March 04, 2018

Short Story: Joycee (The Neelesh Misra Show)

शाम के पाँच बजे थे। बालकनी से धूप सिमटते देख, मेरे हाथ और तेजी से चलने लगे। एक-एक कपडे की पॉकेट चेक-कर, मैं उन्हें वाशिंग-मशीन में डालने लगी। तभी सरसरी निगाह से मैंने कमरे में देखा। बिस्तर पर कुछ कपडे छूट गए थे। मैं अंदर आयी तो कमरे में फैली खामोशी ने घेर लिया। मैंने बैड पर लुढके रेडियो को ऑन कर दिया।
दिल्ली FM पर कोई पॉप-सांग चल रहा था। अगर गाने, मूड के हिसाब से ना बजे तो कितने बेसुरे लगते हैं। रेडियो ऑफ करके, मैं वहीं बिस्तर पर बैठ गयी। कमरे में फिर खामोशी साँस लेने लगी।
चादर पर पडी सलवटें निकालते हुए, मैंने हाथ बढाकर सिरहाने रखा कुशन उठा लिया। उसपर बने चेहरों को देखकर, पाँच महीने पहले की वो भीगी शाम याद आ गई।



Short Story: Do Dilon Ke Beech (The Neelesh Misra Show)

वो मेरे घर की छत पर खडी थी। आँखो से अक्टूबर की गुनगुनी धूप सेकती हुई। उसका एक हाथ कमर पर था और दूसरा हाथ दाँतो पर ब्रश घुमाने में व्यस्त, वो खुद में इतनी डूबी हुई थी जैसे दाँत साफ करना दुनिया का सबसे जरूरी काम हो। पीछे गर्दन पर झूलते जूडे से कुछ बाल निकलकर आगे कंधे पर आ गए। जिसे उसने ऐसे ही रहने दिया। वो कभी दो-कदम पीछे जाती, कभी चार-कदम आगे। कभी झुककर मुंडेर पर रखे गमलों को देखती तो कभी आँखे मिचकाते हुए मेरे घर के चारों ओर फैली पेड़ो की लम्बी कतारों को। 

इधर-उधर डोलती उसकी नजरें इस बीच मुझसे टकराई। वो थोडी असहज हो गयी। उतनी ही जितना मैं हुआ, उसे अपने घर में देखकर। 




Short Story: Hone Wale JijaJi (The Neelesh Misra Show)


मैनगेट पर होर्न की आवाज आते ही मैं भागकर घर के अंदर आ गया। एक नजर ताईजी को देखते हुए मैं जल्दी-जल्दी सीढीयाँ चढने लगा तो वो साड़ी के कोने से चश्मे को रगड़ते हुए बोलीं वासु सुन तो

आया ताईजी कहते हुए मैंने उपर मेघा दी को आवाज लगाई। मेरे पहुँचने से पहले मेरे शब्द कमरे में पहुँच चुके थे।

पूरी की पूरी बारात आई है...दी हाँफते हुए मैंने पर्दा हटाया और एक नजर कमरे पर डाली। हर चीज बिखरी थी, बिस्तर पर कपडे थे, तौलिया नीचे फर्श पर, कबर्ड खुली थी, पंखा फुलस्पीड पर लेकिन इन सबके बीच वो नहीं दिखी जिनकी आज सगाई थी।




Mera Gaon Connection: About Banasthali Vidhyapeeth

Originally Published at Gaon Connection 


दिन में गड़गड़ाते काले बादल, बहती हुई बारिशें, पेड़ो के नीचे छुपकर गीले पंखो को झाड़ते पंछी।
रातों में दूर तक फैली ठण्डी रेत में कभी नंगे पैर चलना, तो कभी आसमान में दौड़ते उस चाँद का हाथ फैलाए पीछा करना।

नहीं ये कोई कविता नहीं है। ये सब मेरे बचपन की यादें है.. कुछ बेमोल अनुभव। यही बिखरी हुई तस्वीरें जो मुझे आज भी गाँवो की कच्ची महक से जोडे हुए हैं। बारिश की उसी सौंधी खुशबू के साथ।

बचपन में वनस्थली विद्यापीठ सबके लिए एक महिला शिक्षण 
संस्थान था वहीं मेरे लिए मेरी नानी का घर। राजस्थान के टोंक-निवाई जिले में बसा वनस्थली, निवाई के रेलवे स्टेशन से करीब दस किलोमीटर दूर है। लगभग 1000 एकड में फैली ये जगह, बीते कुछ सालों में काफी प्रगति कर चुकी है, लगता है जैसे शहरीकरण हो गया हो। यूनिवर्सिटी में पन्द्रह हजार से उपर लड़कियाँ पढ़ती हैं। लेकिन जब मैं उस बीस साल पुरानी वनस्थली को याद करती हूँ तो शायद उससे बेहतर मेरी दुनिया में कोई जगह नहीं मिलती।

गाँव शहरों की तरह भागते नहीं हैं वो कभी आपको पीछे नहीं छोड़ते। आपके साथ खड़े होते है। वनस्थली में भी एक ठहराव था। जिंदगी रुकी हुई नहीं थी, सुकून भरी थी। 


Photo Courtesy - Ajendra Singh Bhadoria