February 15, 2015

गुलजार साब की नज़्म - सब कुछ वैसे ही चलता है


जो गुजर जाती है बस उसपे गुज़र करते हैं" ज़िंदगी की दास्तां बयाँ करते गुलजार साब के लफ्ज़ हमारे एहसासों को आवाज़ दे जाते हैं। अक्सर उनकी नज़्मों और गीतों में उलझ कर मायने मिल जाते हैं सांसों को, अर्थ मिल जाता है जीवन का.. 

कैसे कोई इतने आसान लफ्ज़ों में अनकही यादें पिरो देता हैक्यूँ हम अपनी ज़िदंंगी में घटा हुआ, उनके गीतों में ढ्ंढू लेते हैंशायद यही गुलजार हैं..

गुलजार साब की नज़्म "सब कुछ वैसे ही चलता है" धीमे से कामों में एक कड़वा सच गुनगुना जाती है कि ज़िंदगी एक रवायत है, जिसे निभाना पड़ता है, उनके बिना भी जो कभी आपकी ज़िंदगी थे। 

सब कुछ वैसे ही चलता है 
जैसे चलता था जब तुम थी 

रात भी वैसे ही 
सर मूंदे आती है 
दिन भी वैसे ही 
आँखें मलता जागता है 

तारे सारी रात जम्हाईयाँ लेते हैं 
सब कुछ वैसे ही चलता है 
जैसे चलता था 
जब तुम थी 

काश तुम्हारे जाने पर
कुछ फर्क तो पड़ता जीने में 
प्यास ना लगती पानी की 
या नाखून बढना बंद हो जाते 
बाल हवा में ना उड़ते 
या धुंआ निकलता सांसों से 
सब कुछ वैसे ही चलता है 

बस इतना फर्क पड़ा है मेरी रातों में 
नींद नहीं आती तो 
अब सोने के लिए 
एक नींद की गोली 
रोज़ निगलनी पड़ती है 

- गुलजार साब


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