टाइटल – पोस्ट मास्टर
लेखक
– रविन्द्रनाथ टैगोर
अनुवादक
– माधवानंद सारस्वत
प्रकाशक
– पुस्तक संसार
रेटिंग
– 4/5
'प्रसन्न रहना तो बहुत सहज है, परन्तु सहज रहना बहुत कठिन'
– रवीन्द्रनाथ टैगोर *रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861 – 1941)
साहित्य के सर्वश्रेठ नॉबल पुरुस्कार से स्म्मानित “रवीन्द्रनाथ टैगोर” का नाम शिक्षा, कला, किताबें, रंगमंच, संगीत सभी क्षेत्रों.. पर दस्तक देता है, हर विधा में पांरगत। भारत का राष्ट्रगान आप के द्वारा ही रचित है। मुख्य रूप से बंगाली में लिखने वाले टैगोर जी ने भारत के साहित्य जगत को एक नई उचाइयों तक पहुंचाया था।
इनका लेखन किसी कालखंड विशेष वर्ग के लिए
नहीं था । आज भी रवीन्द्र नाथ टैगोर सबसे अधिक पढे जाने वाले लेखको में से एक गैं।
इनकी कहानियों में, कविताओं में एक तरफ मिट्टी की सौंधी खुशबू है वहीं दूसरी तरफ
पश्चिमी संस्कृति..साहित्य से भारत का परिचय कराने में आपने कभी परहेज नहीं किया।
इनके लेखन में नियम कानून आदि लफ्ज़ बेमानी लगता है... सृजन उन्मुक्त.. और शायद
इसलिए आज भी उतने ही उत्साह से पढ़ा जा रहा है।
हालाकि मैं जिस किताब की बात कर रही हूँ,
वो रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहिनियों का अनुवाद मात्र है, माधवानंद सारस्वत जी
ने एक अच्छी कोशिश की है, अगर आप हिन्दी में रवीन्द्र नाथ जी को पढ़्ना चाहते हैं
तो किताब आपको निराश नहीं करती, हाँ अगर हिन्दी थोड़ी सरल होती तो पढ़ने में एक लय
बनी रहती है.. यथा तथा रूककर नेट पर शब्दार्थ ढ़ूंढना कभी-कभी आपको थका देता है। लेकिन
वहीं कहानियों का सार उनका मुख्यांश बनाये रखना बड़ी बात है यहां माधवानंद जी का
प्रयास सराहनीय है।
यह किताब कुल दस कहानियों का संग्रह
है जिसमें जीवन के हर पहलू का चुनकर कहानियों में ढाला गया है। संपादक ने रवीन्द्रनाथ
टैगोर जी की कहानियों का चुनाव कुछ इस तरह किया है कि कहना मुश्किल होगा कौनसी
कहानी दिल को छू गई..।
अपरिचिता, पत्नी का पत्र, पोस्टमास्टर,
दहेज़, पात्र और पात्री, एक रात, मुन्ने की वापसी, व्यवधान... इसी क्रम में पंसद की गई हैं। रामकन्हाई
की मूर्खता और हालदार परिवार.. कुछ पेचीदगी के अहसास करवाती हैं, हिन्दी भाषा में अच्छी पकड़ रखते हैं तो अवश्य पढिए।