June 22, 2018

Storywallah: Short Stories (Neelesh Misra's Mandali)



नीलेश मिसरा सर की आवाज में आपने रेडियो पर, सावन एप पर, यू-ट्यूब पर कई कहानियाँ सुनी होंगी। एक दशक होने को है। कहानियों में रिश्तों की गर्माहट होती है, नॉस्टेलिया होता है, साधारण लोंगो की असाधारण कहानियाँ हैं ये। एहसासों की ये भीतरी यात्रा अब एक किताब की शक्ल में आ रही हैं, नाम है स्टोरीवाला, पेंगुईन इंडिया प्रकाशक हैं। किताब 21 जून से अमेजन पर उबलब्ध है। क़िताब का हिस्सा हूँ खुश हूँ, हैरान हूँ, सपने साँस ले रहे हैं।


Photo Source: Ajendra Singh Bhadoria
Buy Link: STORYWALLAH (Penguin Books) 

June 20, 2018

किताब समीक्षा : दस्तक खयालों की - आशीष अग्रवाल ‘वजूद’



शीर्षक: दस्तक खयालों की
लेखक: आशीष अग्रवाल ‘वजूद’
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
विधा: कविता, साहित्य
पृष्ठ: 160
आईएसबीएन:  978-9352668694
रेटिंग: 4/5



रोजमर्रा की भाग-दौड़ में चन्द लफ्ज़ो का ठहराव सुकून देता है। इन दिनों आशीष अग्रवाल को पढ रही हूँ, वजूद के नाम से लिखते हैं। सोशल मीडिया पर लोग इन्हें वजूद के नाम से ही पहचानते हैं। शायरों की भीड़ में अपनी अलग पहचान रखते हैं। पिछले कुछ वक्त से ट्वीटर पर एक्टिव रहे, और हाल ही में अपनी पहली किताब “दस्तक ख्यालों की” के साथ, पाठकों की बुकशेल्फ तक पहुँच चुके हैं। लेखक के लिए ये बहुत ही खूबसूरत यात्रा होती है


वो जब नही होता है,
महसूस होता है

ये भी ऐब के जैसा है,
किसी ऐब का ना होना


दस्तक खयालों की, ये किताब सर्दियों में लॉन पर बिखरी गुनगुनी धूप सी है। किताब को खूबसूरत स्केचेज़ के जरिए कई खण्डों में बाँटा गया है। कहीं रिश्ते में पलती गर्माहट है तो कहीं दूरियों की कशमकश। आशीष ने, सीधे सादे लफ्ज़ों मे अपनी बात रखी है, भाषा को कठिन शब्दों का लिफाफा पहनाने की कोशिश नहीं की और शायद इसलिए किताब में लिखा हर शब्द पाठक को महसूस होता है। आशीष ने, एहसासों को, हमारे भीतर चलती लम्बी यात्राओं को कुछ लफ्ज़ों में बाँधा है।  
  
चुप्पी अब तक जारी है
बात को दोनों पकड़े है

दिलासा सब को दे दिया मैंने,
मुझ को अब सम्भाल ले कोई

इस किताब में आशीष, वर्तमान में टूटते बिखरते रिश्तों की अहमियत याद दिलाते हैं, उनकी सूक्ष्मदर्शी नजर वो भी देख लेती है जिसे लोगों द्वारा अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। कहीं भाषा की अभद्रता पर तीखा प्रहार किया गया है, तो कहीं सियासत में होती उठापठक, इनकी शायरी में कई वैरिएशन हैं, जो पाठक की सोच को विस्तार देते हैं।
भली इतनी है अगर,

गालियों मे फिर क्यूँ है माँ

आवाम माँगने लगे न कही हिसाब वादों का,
सियासत जानती है कब जज्बात छेड़ना है

मोहब्बत की तरह एक दिन तय कर दो कोई,
ये रोज रोज की नफरतें अच्छी नही लगती

आजकल रिश्ते बनने से पहले बिखरने लगते हैं, और जहाँ तक इस किताब का सवाल है, इसमें शायर ने सबसे खूबसूरत पक्तियाँ रिश्तों के उपर ही लिखी हैं, मैं उनको ठहर कर पढ़ रही थी, बार बार पढ़ रही थी। सोच रही थी कि ये अनुभवो के स्तर पर किया गया लेखन है या कल्पना के धरातल पर बुना गया सत्य। आशीष लिखते हैं

जान है बाकी रिश्ते में,
अभी शिकायत होती है

जैसे सफर का मुसाफिर घर को,
तेरी तरफ मैं यूँ लौटता हूँ

गुफ्तगू मे उनको तकलीफ है शायद,
तो अब से ये होगा कि परेशाँ ना करेगें

इस किताब में आशीष ने, जिंदगी से रूबरू हर पहलू को छूने की बेहतरीन कोशिश की है, कॉफी पर ठिठकी नींद का जिक्र है, व्यस्तता के बीच खो चुकी जिंदगी है, उम्मीदों और ख्वाहिशों पर भी क्या खूब लिखा है। यही संवेदनशील लेखन, पाठक को इस किताब की ओर बार बार लौटने पर मजबूर करता है, ये सिरहाने जगह पा जाने वाली किताब है, जिसे रोज बूँद-बूँद जिया जा सके।

मोहब्बत की तरह एक दिन तय कर दो कोई,
ये रोज रोज की नफरतें अच्छी नही लगती

ये जो भी हूँ, बस तुम्हारी खातिर,
सच कहूँ ये मेरा मिजाज नहीं है

किसने चलाया ये तोहफे लेने-देने का रिवाज़,
गरीब आदमी मिलने जुलने से डरता है


ये तो कोई होड़ सी है,
जिंदगी का क्या हुआ

कभी फुर्सत से आ तसल्ली से बैठ,
जिंदगी तुझसे मशवरा चाहता हूँ


जब एक ख्याल लम्बे अर्से तक ज़हन में पकता है तो भीतर कहीं दस्तक होती है, आशीष ने अपनी पहली किताब में उसी दस्तक को लफ्ज़ो की ज़मीन दी है। अशेष शुभकाएनाएँ। अगली किताब का बेसब्री से इंतजार रहेगा।  

 
Ashish Agrawal "Vajood" 

लेखक से जुड़ने की जगह: ट्वीटरइंस्टाग्राम

किताब की प्रति पाने के लिए: अमेजनफ्लिपकार्ट
मेल एड्रेस: Vajoodnaama at gmail dot com