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September 18, 2018

Story: Yaadon Ka Idiot Box with Neelesh Misra - Chaukhat (Aired on 92.7 BigFM)


दो पौधे मिट्टी में रोंपकर, थोड़ा खांसते हुए, मैं कुर्सी पर आकर टिक गयी। पलकों में भारीपन महसूस हुआ। ये थकान पचास की उम्र को छू चुके शरीर की नहीं थी। मेरा मन थक चुका था। कभी इंतजार करते हुए, तो कभी किए जा रहे इंतजार को दुनिया की नजरों से छुपाते हुए।

धुंधलाई नजरों से मैंने आसमान को देखा। गहरे-जामुनी बादल बरसने को तैयार खड़े थे। हथेली से घुटनों को सहलाते हुए मैंने तनु के कमरे की ओर नजर डाली। खिड़की अब-तक बंद थी।

“ये लड़की भी जाने कब बड़ी होगी, आठ-बजे तक कौन सोता है” चेहरे पर गुस्से में घुली-मिली मुस्कान आ गयी।

सुबह होने पर मैं अक्सर भूल जाया करती थी कि इस घर में मेरे अलावा एक और शक्स है....तनु। तनु को सिर्फ एक रिश्ते में बाँधना मुमकिन नहीं था। वो मेरे लिए क्या थी ये सिर्फ मैं ही जानती थीं, मेरी वर्क-पार्टनर, शाम की चाय पर चियर्स कहने वाली दिलपंसद साथी या मेरे इकलौते बेटे कबीर की मंगेतर... 



August 31, 2018

Story - Yaadon Ka Idiot Box with Neelesh Misra : Nani Ka Baksa (Aired on 92.7 BigFM)

Poster Courtesy Big FM
बस अपने तयशुदा वक्त पर चल दी। खिड़की से आती ठंडी हवा की सरसराहट मुझे उस घर की याद दिला रही थी जो पाँच साल पीछे मेरी यादों में ठहरा था। नानी-माँ का घर। मेरा मन, खुले आँगन में बिखरी यादें बीनने लगा।
आँवले के मुरब्बों की गंध मेरी नाक में भर गयी। आँखे मिचमिचा उठी, जैसे रात को छत पर, नानी की साड़ी के आँचल से छनता चाँद देख लिया हो, कई रंगो से घिरा चाँद।
उन दिनों भोलू सारी रात गली में भौंकता था। झिंगुर की आवाजें सायरन-सी सुनाई पड़ती। तब नानी मुझे अपने सीने से चिपकाए नए-नए भगवान की कहानी सुनाती। जहाँ सुबह की नींद अलार्म-क्लॉक से नहीं मोर की बोली से खुलती, जहाँ की दोपहरें चिलचिलाती धूप नहीं, पौधों की गहरी-हरी-छाँव समेटे होतीं।
जयपुर के पास बसा वो छोटा-सा कस्बा मेरी नानी का घर था। जहाँ कभी सबसे जरूरी इंसान था...मैं।

Story - Yaadon Ka Idiot Box with Neelesh Misra : Yaar-e-Mann (Aired on 92.7 BigFM)

Poster Courtesy: Big FM
वो मेरी ही तरफ बढ़ रही थी। कदम दर कदम, लम्हा दर लम्हा। जरा-सा झुककर कभी पैरों से लिपटी भीगी साड़ी को अलग करती हुई। तो कभी चेहरे से अधगीले बालों को हटाती हुई। 

जब उसने आँखो पर चढ़े गोगल्स को उपर सरकाया तो मेरे अंदर एक अजीब हलचल पैदा हुई। उसकी गहरी आँखों में आज भी उतना ही गहरा काजल था जो शायद बारिश में भीगने की वजह से जरा फैल गया। ये सोचते हुए मेरी नजरे विंडो-ग्लास पर गयी, बाहर बारिश सचमुच तेज़ थी।

इस बीच विदी से मेरी नजरें टकरायीं, वो टकराहट मानो हम-दोनों को बुत-सा कर गयी, स्टोंड, स्टैच्यू। मेरे होंठ बुदबुदाए। उसके होंठ मुस्कुरा कर रह गए, एक अनचाही, अनबोली मुस्कान।

कई सवाल मेरे मन में खलबली मचाने लगे। उसने पहचान तो लिया होगा? मेरा नाम भूली तो नही होगी ना? सिड कहेगी, या तकल्लुफी में सिद्धार्थ? सोचते हुए मैंने गहरी साँस ली।