वो मेरी ही तरफ बढ़ रही थी। कदम दर कदम, लम्हा दर
लम्हा। जरा-सा झुककर कभी पैरों से लिपटी भीगी साड़ी को अलग करती हुई। तो कभी चेहरे
से अधगीले बालों को हटाती हुई।
जब उसने आँखो पर चढ़े गोगल्स को उपर सरकाया तो
मेरे अंदर एक अजीब हलचल पैदा हुई। उसकी गहरी आँखों में आज भी उतना ही गहरा काजल था
जो शायद बारिश में भीगने की वजह से जरा फैल गया। ये सोचते हुए मेरी नजरे विंडो-ग्लास
पर गयी, बाहर बारिश सचमुच तेज़ थी।
इस बीच विदी से मेरी नजरें टकरायीं, वो टकराहट
मानो हम-दोनों को बुत-सा कर गयी, स्टोंड, स्टैच्यू। मेरे होंठ बुदबुदाए। उसके होंठ
मुस्कुरा कर रह गए, एक अनचाही, अनबोली मुस्कान।
कई सवाल मेरे मन में खलबली मचाने लगे। उसने पहचान
तो लिया होगा? मेरा नाम भूली तो नही होगी ना? सिड कहेगी, या तकल्लुफी में
सिद्धार्थ? सोचते हुए मैंने गहरी साँस ली।