August 20, 2014

तस्वीरें !

बेमाने इन रिश्तों की गर खुमारियाँ उतरें
खामोशियों के इर्द-गिर्द फिर ढूंढ़ना मुझे...

बहते तेरे पलों में
इक बेफिक्र लम्हा था,  
आंखों में दर्ज़ कर उसे
मैं,
नई उम्र दे गया...

कई हिज़ाबों से घिरा इक
शख्स तन्हा था,
आंखों में दर्ज़ कर तुझे
मैं,
एक दास्तां दे गया...

तुम्हें गिला रही अक्सर,
”कुछ कहते नहीं हो तुम..!!”
तुम्हारी इस अदा को भी
नज़ारा-सोज़ ( worth seeing ) करता रहा हूँ मैं...


खामोशियों के इर्द-गिर्द फिर ढूंढ़ना मुझे
उन्हीं तस्वीरों के इक खास रंग में निहां ( Hidden) हूँ मैं...


- अंकिता चौहान 



August 14, 2014

मैं भी एक नज़्म होती

Photo Courtesy : Google 

क़ाश !
मैं भी एक नज़्म होती,
तुम अपनी
डेस्क पर बिखरे पन्नों में दबे हुए
अल्फाज़ों को साध
उतार लेते कागज़ पर मुझे...

खिड़की से छनकर आती नै-रंग (fascinating) हवा,
आफताबी सदा ( Sound)
जब जब तुम्हारे ज़हन पर
दस्तक देते
उधार ले उनसे एक-आध मिसरे
तुम गढ़ लेते मुझे...

फिर
अपनी उंगलियों में
उलझी हुई उस कलम को
खुद से जुदा कर,
उठा कर् सफ़हे (page) समेट मुझे
नज़रों के करीब लाते,

दोहराते मुझे
अपना साज़ देते..

चाँदनी के नूर में
पगा हुआ
इक शीरीं (Sweet) सा नाम देते...

काश !
मैं भी एक नज़्म होती तो,
मेरे राहबर, ( Guide)
तुम मुझे अपनी
एक मुकम्मल शाम देते..!!

- अंकिता चौहान