July 28, 2013

अपना आसमां !




हल्की सी रिमझिम बारिश की बूंदें,
सोए सोए से हम ये अल्हड़ सी नींदें ...

भर गया आसमां काली घटाओं से
एक नयी दिशा में हवाओं ने रुख मोड़ लिए,
वृक्ष पर हिलोरे लेती शाखाओं ने
मानो नये वस्त्र ओढ लिए ...

पक्षी चहचहा उठे
राग मलहार गा रहे हैं,
वर्षा ऋतु के आगमन पर
जलमग्न हो जश्न मना रहे हैं ...
कितना खूबसूरत हैं सब ...

नज़रें आकाश से हटकर
जब दूर एक बस्ती पर पड़ी..
मानो एक आईना टाँग दिया हो
सामने आसमां के,
वहाँ भी नीलिमा छाई हुइ थी
नीली काली त्रिपालों की ...

हम जिन बूंदों को हाथ भर
महसूस करना चाहते हैं,
उन कच्चे घरों में कदम भर
जगह छानते हैं उनसे बचने के लिए,
उस जलधार से
जो गरीबी की चादर ओड़
मज़ाक उड़ा रही है ...

ठिठुरती सांसें माला जप रही हैं
किसी तरह टल जाऐ एक और बरसात
एक और कालजयी विपदा ...
 
कितनी बिखर गयी है दुनिया
बँट गयी है...

धर्म के ठेकेदार तो व्यर्थ ही
अपना वर्चस्व जमाते हैं
मैं हिन्दू तु मुस्लिम ...

धर्म तो यहाँ दो ही पल रहे हैं
“ अमीर और गरीब ”
और इनके बीच की गहरी खाई में
दिन रात गूँजती आवाज़ें,
तोड़ देती हैं हर असमर्थ को
मिटाना चाहती हैं अस्तित्व उसका ...!!


- अंकिता चौहान

July 19, 2013

ये आँखें...

Photo Courtesy - Google

कितना कुछ समेत के रखती हैं
समन्दर की गहराई नापती
ये आँखें...

अपनी अलग ही दिलकश भाषा रखती हैं
ये पलक झपकती आँखें...

बिन कहे ही
हज़ारों अर्थ दे जाती हैं, लफ्ज़ों को...

कुछ टूटे बिखरे सपनों को
आसरा देती ये आँखें...

दर्द चुभन तिरस्कार के अंधेरे को चीरकर
स्वर्णिम किरण बिखेरती ये आँखें...

खट्टॆ मीठे अहसासों की नज़म बना
उन्हें गुनगुनाती ये आँखें...

अश्कों को मुस्कुराती तितली में बदल  
सहनशक्ति की मिसाल देती ये आँखें...

आधी रात में जगमगाता काल्पनिक आकाश बुन
उसपर आशा के तारे टांकती ये आँखें...

अपनी हार जीत के चक्रव्युह से उपर उठ
ताउम्र सबके लिये खुशियाँ तलाशती ये आँखें...

अपनों द्वारा उठाये गये बेबुनियाद सवालों के
ज़बाब ढूढती ये आँखें...

आज यादों के कुछ एक पन्ने पलटते हुए
ना जाने क्यूँ
सिसकती नमी से सराबोर हो गयी ये आँखें...!!



- अंकिता चौहान

July 08, 2013

स्पर्श


Photo Courtesy - Goolgle

जान नहीं पाई मैं,
कैसे अनकहे ही
सब जान जाती थी तुम..

मेरी एक आह सुनते ही
गहरी नींद से जाग जाती थी तुम..
मेरी एक मुस्कुराहट पर
अपने सारे दर्द भुला देती थी तुम..

मेरे निराश होने पर
आशा के अखण्ड  दीप जला देती थी तुम..
मेरी अनसुलझी  धड़कनों की
मध्यकड़ी थी तुम..

कभी-कभी मेरे लिए
अपने ईश्वर से भी लड़ी थी तुम..
अंतिम विदाई पर हल्की मुस्कान लिए 
जब तुम जड़ सी पड़ी थी,
सहमी हुई सी मैं
निशब्द खड़ी थी..

इस आस में कि,
तुम आओगी एक दिन
वक़्त के पहियों को निरंतर तकती हूँ..

पास नहीं हो तुम मेरे
फिर भी तुम्हरा स्पर्श महसूस करती हूँ..!!



- अंकिता चौहान

July 02, 2013

छोटी सी आशा

Photo Credit : Google

गाड़ी के शीशों में से झांकती
वो मासूमियत से लबरेज़ आँखें,

जीजी एक गुलाब ले लो..
ये गजरा ले लो मोगरे का,
अहा ! ताजा है ।
सुबह तड़्के उठ पिरोया है

आगे चल आगे
टैक्सी ड्राइवर की कड़कती आवज़ से

सहम सी गयी वो
सकपका के कंधे उचका कर
बालों को चेहरे से हटा
अपनी नज़रें दोड़ाई दूर तक..

कन्धे पर चन्द किताबों से भरा
एक अस्त-व्यस्त पैबंद लगे
बैग की डोर खींची..

मानो,
दिखा रही हो अपने वर्तमान को कि
दृढ़-निश्चय संकल्प से
कुछ भी कर सकती हूँ मैं
अपना भविष्य बदल सकती हूँ मैं

दिल में एक छोटी सी आशा
चमकती आंखों से झलकता विश्वास लिए
बढ़ गयी आगे, हो गयी ओझल
एक पल की अपरिमित मुस्कान की तरह ...

अपने नन्हे से हाथों में पुष्प-वाटिका लिये
हमें ज़िन्दगी के मायने समझाकर,
मानो खुद के लिए

चंद खुशियाँ बटोर रही हो ...!

- अंकिता चौहान

धुल सा गया सब !!

Photo Courtesy - Google
आज फिर यूहीं
कागज़ के कुछ बेतरतीब
पुर्जे झाड़ रही थी..
कुछ पुराने खत मिले
भरे-भरे
फिर भी कितने खाली-खाली
एहसासों की स्याही से लिखे
वो चहकते लफ्ज़
वक़्त चलते धुंधला से गए
एक डायरी
जिसका फटा हुआ ज़िल्द
मानो मायने समझा रहा हो
उस रिश्ते के
जो शायद था ही नहीं...

उसमें दबा एक गुड़्हल का पत्ता
ना चाहते हुए भी भीगी हुइ मुस्कान छोड़ गया
फूल नहीं कुछ पत्ते दिये थे तुमने
जो सृष्टि निर्माण की मुख्य भूमिका में होते हैं
साथ निभाते हैं .... अंत तक

एक घड़ी थी रुकी हुइ सी
मानो मेरी हर धड़कन का हिसाब रख रही हो
एक कलम जिसकी स्याही सूख चुकी है
मेरी पलकों पर जमी बूंदों की तरह..

निर्निमेष देखती रही सब
उस कब्र सी खामोशी में,
यादों की धाराओं ने
आज फिर झकझोर दिया मुझे...
अब ज़िन्दा कहाँ था वो रिश्ता
और जीवित कहां थी मैं...
भर लिफाफे में
उस दर्द, उस चुभन को
बस् एक आवाज़
“ सुनो भैया पुराने अखबारों के साथ
ये भी ले जाइये ..
सब धुल सा गया .. अब रद्दी है ..!! “

- अंकिता चौहान