July 02, 2013

छोटी सी आशा

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गाड़ी के शीशों में से झांकती
वो मासूमियत से लबरेज़ आँखें,

जीजी एक गुलाब ले लो..
ये गजरा ले लो मोगरे का,
अहा ! ताजा है ।
सुबह तड़्के उठ पिरोया है

आगे चल आगे
टैक्सी ड्राइवर की कड़कती आवज़ से

सहम सी गयी वो
सकपका के कंधे उचका कर
बालों को चेहरे से हटा
अपनी नज़रें दोड़ाई दूर तक..

कन्धे पर चन्द किताबों से भरा
एक अस्त-व्यस्त पैबंद लगे
बैग की डोर खींची..

मानो,
दिखा रही हो अपने वर्तमान को कि
दृढ़-निश्चय संकल्प से
कुछ भी कर सकती हूँ मैं
अपना भविष्य बदल सकती हूँ मैं

दिल में एक छोटी सी आशा
चमकती आंखों से झलकता विश्वास लिए
बढ़ गयी आगे, हो गयी ओझल
एक पल की अपरिमित मुस्कान की तरह ...

अपने नन्हे से हाथों में पुष्प-वाटिका लिये
हमें ज़िन्दगी के मायने समझाकर,
मानो खुद के लिए

चंद खुशियाँ बटोर रही हो ...!

- अंकिता चौहान