Photo Courtesy - Goolgle |
जान नहीं पाई मैं,
कैसे अनकहे ही
सब जान जाती थी तुम..
मेरी एक आह सुनते ही
गहरी नींद से जाग जाती थी तुम..
मेरी एक मुस्कुराहट पर
अपने सारे दर्द भुला देती थी तुम..
मेरे निराश होने पर
आशा के अखण्ड दीप जला देती थी
तुम..
मेरी अनसुलझी धड़कनों की
मध्यकड़ी थी तुम..
कभी-कभी मेरे लिए
अपने ईश्वर से भी लड़ी थी तुम..
अंतिम विदाई पर हल्की मुस्कान लिए
जब तुम जड़ सी पड़ी थी,
सहमी हुई सी मैं
निशब्द खड़ी थी..
इस आस में कि,
तुम आओगी एक दिन
वक़्त के पहियों को निरंतर तकती हूँ..
पास नहीं हो तुम मेरे
फिर भी तुम्हरा स्पर्श महसूस करती हूँ..!!
- अंकिता चौहान