समन्दर की गहराई नापती
ये आँखें...
अपनी अलग ही दिलकश भाषा रखती हैं
ये पलक झपकती आँखें...
बिन कहे ही
हज़ारों अर्थ दे जाती हैं, लफ्ज़ों को...
कुछ टूटे बिखरे सपनों को
आसरा देती ये आँखें...
दर्द चुभन तिरस्कार के अंधेरे को चीरकर
स्वर्णिम किरण बिखेरती ये आँखें...
खट्टॆ मीठे अहसासों की नज़म बना
उन्हें गुनगुनाती ये आँखें...
अश्कों को मुस्कुराती तितली में बदल
सहनशक्ति की मिसाल देती ये आँखें...
आधी रात में जगमगाता काल्पनिक आकाश बुन
उसपर आशा के तारे टांकती ये आँखें...
अपनी हार जीत के चक्रव्युह से उपर उठ
ताउम्र सबके लिये खुशियाँ तलाशती ये आँखें...
अपनों द्वारा उठाये गये बेबुनियाद सवालों के
ज़बाब ढूढती
ये आँखें...
आज यादों के कुछ एक पन्ने पलटते हुए
ना जाने क्यूँ
सिसकती नमी से सराबोर हो गयी ये आँखें...!!
- अंकिता चौहान