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June 29, 2016

किताब समीक्षा: बाल नाटक – रविन्द्रनाथ ठाकुर

शीर्षक: बाल नाटक
लेखक: रविन्द्रनाथ ठाकुर
प्रकाशन: राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य परिषद
शैली: रविन्द्र बाल साहित्य
आइएसबीएन: 818956207-X
संस्करण: प्रथम, 2013
स्त्रोत: लाईब्रेरी
पृष्ठ: 72
रेटिग: 4/5

रविन्द्रनाथ ठाकुर जी की कई कहानियों से गुजरने के बाद, आज उन्हीं के द्वारा गढा हुआ बाल साहित्य हाथ लगा। हल्की फुल्की सी किताब चंद सफहों में सिमट गई। कुछ पाँच नाटकों को संंग्रहित करके बाल मन तक पहुंचने का बहुत ही खूबसूरत प्रयास किया गया है। 

बच्चों सा साफ सरल दिल लिए पहला नाटक छात्र की परीक्षा मन को गुदगुदा जाता है। मैं कल ही सोच रही थी, ह्यूमर ज़ोन में किताबो को डालकर कुछ भी परोस देते हैं, या मुझे ही खुलकर हंसना नहीं आता। लेकिन इस संग्रह का पहला नाटक ही मेरे इस भ्रम को तोड देता है, जी खोलकर हंस सकते है आप।

दूसरा नाटक प्रसिद्धि का कौतुक भी बेहतरीन है, मुख्य पात्र एक ऐसा वकील है जिसे चंंदा देने से खास चिढ़ है, और उसकी यह चिढ कैसे उसके लिए सिरदर्दी बन जाती है।

इसी प्रकार अन्य नाटक मुकुट, बरछी बाबा, भी रोचक लगे। 

8 से 12 साल तक के बच्चों के लिए यह किताब बहुत ही प्यारा उपहार हो सकती है। मुझे ये बात हैरान कर गई कि गीतांजलि जैसा महाकाव्य रचने वाले ठाकुर बाबा बच्चों की कहानियाँ भी उसी परफेक्शन से लिख गए। हमारे राजस्थान में ऐसी शख्सियत को सम्मान देने के लिए एक ही शब्द है....ढोक (झुककर प्रणाम करना)। अवश्य पढिएगा।  
किताब के प्रथम नाटक में नन्हा सा बच्चा अंकगणित के सवाल पर कुछ इस प्रकार जवाब दे रहा है। 


June 05, 2016

किताब समीक्षा- रविन्द्रनाथ टैगोर की सम्पूर्ण कहानियाँ

शीर्षक: रविन्द्रनाथ टैगोर की सम्पूर्ण कहानियाँ
प्रकाशक: आर के पब्लिशर्स
प्रकाशित वर्ष: 2011
पृष्ठ: 280
स्त्रोत: लाईब्रेरी
आईएसबीएन: 9788188540938

टैगोर जी की कहानियों के बारे में कुछ भी लिखें कम ही होगा, उनका अपना पाठक वर्ग नहीं है, बल्कि पाठक शब्द की नींव ही शायद रवीन्द्रनाथ टैगोरजी ने रखी हो। बंगाली भाषा के श्रेष्ठतम कवियों में गिने जाने वाले टैगोर जी को अगर उन्ही की भाषा में पढा जाए, तब कहीं हम उन्हें शायद पूरा पढ पाए।

इस संग्रह में उनकी कई कहानियों को समेटा गया है, ऐसा ही एक संग्रह पिछले साल पढ़ा था रविन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षाप्रद कहानियाँ, उस किताब में भी लगभग यही कहानियाँ थी लेकिन भाषा बेहद सरल और पढते वक्त प्रवाह बनाने में सहायक थी। यहाँ इस किताब में यह कमी खलती है, हांलाकि हिन्दी को शुद्ध रूप में ही पढा जाना चाहिए, लेकिन मन कठिन शब्दों में उलझ कर रह जाए तो कहानी अपना अस्तित्व खोने लगती है।

कहानियाँ वहीं थी जो पिछली किताब में थीं सिवाय एक कहानी नष्ट नीड़ के, कहानी का सतही ना होना ही कारण है कि टैगोर जी से हर वर्ग जुड़ जाता है। इस कहानी में भी अहसासों का पात्रो के साथ ऐसा ताल मेल बिठाया गया है कि ये किताब की सबसे अच्छी कहानी के रूप में उभर कर आती है। कहानी के मुख्य पात्र चारू का भोलापन, चारू के पति के छोटे भाई अमल का अनजान बने रहना और चारू के पति भूपति की रिश्ते को, चारू को समझने की अपूर्व कोशिश। कहानी में नरेशन पार्ट कम है, डायलाग्स ज्यादा तो कहानी आंखो के सामने चलती प्रतीत होती है। अगर यह संग्रह कहीं हाथ लगे तो जरूर पढिएगा।       

किताब के मुखपृष्ठ पर  
रवीन्द्रनाथ ठाकुर (1861-1940) उन साहित्य-सृजकों में हैं, जिन्हें काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। रचनाओं के परिमाण की दृष्टि से भी कम ही लेखक उनकी बराबरी कर सकते हैं। उन्होंने एक हज़ार से भी अधिक कविताएँ लिखीं और दो हज़ार से भी अधिक गीतों की रचना की।
इनके अलावा उन्होंने बहुत सारी कहानियाँ, उपन्यास, नाटक तथा धर्म, शिक्षा, दर्शन, राजनीति और साहित्य जैसे विविध विषयों से संबंधित निबंध लिखे। उनकी दृष्टि उन सभी विषयों की ओर गई, जिनमें मनुष्य की अभिरुचि हो सकती है। कृतियों के गुण-गत मूल्यांकन की दृष्टि से वे उस ऊँचाई तक पहुँचे थे, जहाँ कुछेक महान् रचनाकर ही पहुँचते हैं। जब हम उनकी रचनाओं के विशाल क्षेत्र और महत्व का स्मरण करते हैं, तो इसमें तनिक आश्चर्य नहीं मालूम पड़ता कि उनके प्रशंसक उन्हें अब तक का सबसे बड़ा साहित्य-स्रष्टा मानते हैं।

महाकवि के रूप में प्रतिष्ठित रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत के विशिष्ट नाट्यकारों की भी अग्रणी पंक्ति में हैं। परंपरागत और आधुनिक समाज की विसंगतियों एवं विडंबनाओं को चित्रित करते हुए उनके नाटक व्यक्ति और संसार के बीच उपस्थित अयाचित समस्याओं के साथ संवाद करते हैं। परम्परागत संस्कृत नाटक से जुड़े और बृहत्तर बंगाल के रंगमंच और रंगकर्म के साथ निरंतर गतिशील लोकनाटक (जात्रा आदि) तथा व्यवसायिक रंगमंच तीनों संबद्ध होते हुए भी रवीन्द्रनाथ उन्हें अतिक्रान्त कर अपनी जटिल नाट्य-संरचना को बहुआयामी, निरंतर विकासमान और अंतरंग अनुभव से पुष्ट कर प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि राजा ओ रानी (1889), विसर्जन (1890), डाकघर (1912), नटीरपूजा (1926), रक्तकरबी (लाल कनेर), अचसायत (1912), शापमोचन (1931) चिरकुमार सभा (1926) आदि उनकी विशिष्ट नाट्य-कृतियाँ ने केवल बंगाल में, बल्कि देश-विदेश के रंगमंचो पर अनगिनत बार मंचित हो चुकी हैं।


February 24, 2016

Unending Love - A Poem By Rabindranath Tagore


I seem to have loved you in numberless forms, numberless times...
In life after life, in age after age, forever.
My spellbound heart has made and remade the necklace of songs,
That you take as a gift, wear round your neck in your many forms,
In life after life, in age after age, forever.

Whenever I hear old chronicles of love, it's age old pain,
It's ancient tale of being apart or together.
As I stare on and on into the past, in the end you emerge,
Clad in the light of a pole-star, piercing the darkness of time.
You become an image of what is remembered forever.

You and I have floated here on the stream that brings from the fount.
At the heart of time, love of one for another.
We have played along side millions of lovers,
Shared in the same shy sweetness of meeting,
the distressful tears of farewell,
Old love but in shapes that renew and renew forever.

Today it is heaped at your feet, it has found its end in you
The love of all man's days both past and forever:
Universal joy, universal sorrow, universal life.
The memories of all loves merging with this one love of ours -
And the songs of every poet past and forever. 

October 23, 2015

Book Review of Ravindranath Tagore : Short Stories

टाइटल: शिक्षाप्रद कहानियाँ
लेखक: रविन्द्रनाथ टैगोर
प्रकाशक: मनोज पब्लिकेशंस
वितरक: अनु प्रकाशन
संस्करण: 2011
रेटिंग: 5/5

किताब का शीर्षक पढकर मैं थोड़े संशय में थी कि रविन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों में रिश्तों  की बारीकियाँ, मनोभावों का सटीक चित्रण, प्रेमरस में डूबी प्रकृति की अभिव्यक्ति मिलती है। टैगोर जी ने शिक्षाप्रद कहानियाँ भी लिखी हैं..? प्रश्न उत्सुकता भरा था।

किताब खोली गई.. सत्रह बेहतरीन कहानियों का संग्रह है यह किताब, जिसमें चुन-चुन कर टैगोर जी की बेहद खूबसूरत कहानियों को माला में मोतियों की तरह पिरोया गया है। भाषा की सरलता और शब्दों का सही चुनाव पाठकों को अंतिम पृष्ठ तक बांधे रखता है। रविन्द्र जी का लेखन साहित्य जगत के कई आयाम छू चुका है। लेकिन इन कहानियों के अनुवाद  से कभी कभी  कहानी की आत्मा, उसका मुख्य सार लुप्त हो जाता है लेकिन मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी हो रही है कि यह किताब उन सभी मापदंडों पर खरी उतरती है।

सभी कहानियों के पात्र एक लेखक के द्वारा लिखे गए है फिर भी कितने अलग हैं। यह किताब मानवीय भावनाओं का इन्द्रधनुष लगती है।

जहां पोस्टमास्टर में एक बेनाम रिश्ते में आई विरह वेदना है तो वहीं  मुन्ने की वापसी में प्रायश्चित का एक अनोखा रूप दिखता है। मालादान में मज़ाक की हद और रिश्ते पर पड़ते उसके प्रभाव तो दृष्टिदान में पति का अहम और पत्नी  के निस्वार्थ प्रेम को बुना गया है, जिसका अंत मर्मांतक था।

देशभक्त, दुराशा, श्रद्धांजलि, सुभाषिणी, धन का मोह, हेमू आदि कहानियाँ दीपक की रोशनी के नीचे पलते अंधेरे की तरह है जो हमेशा वजूद में होता है लेकिन सबको महसूस नही होता।

अपनी कहानियों के पात्रों का इतना बारिकी से अध्ययन उनको कहानियों में पिरोना और रूपक अंलकार...मेटाफोर्स का इतना अच्छा प्रयोग टैगोर जी के अलावा शायद ही कोई कर पाता है। अवश्य पढ़िए.. अपनी बुकशेल्फ में जगह दीजिए।  

  

October 19, 2015

Book Review : Vaishnavi by Rabindranath Tagore

टाइटल: वैष्णवी
लेखक: रबिन्द्रनाथ टैगोर
अनुवादक: माधवानन्द सारस्वत
पब्लिशर: विवेक पब्लिशिंग हाउस
रेटिंग: 3/5


रबिन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों की अपनी एक दुनिया है एक अलग मुकाम। टैगोर जी की कहानियों को किसी कालखंड में नहीं समेटा जा सकता... जिस तरह वो हर एक अहसास को अपने कहानियों के किरदारों में दिखाते है..हर एक भाव को व्यक्त करते है, अतुल्नीय है। लेकिन कभी कभी जब आप भाषा की अनभिज्ञता के कारण किसी किताब का अनुवाद पढ़ते तो लेखक की कलम का वास्तविक तत्व कहीं खो जाता है। इस किताब की कुछ कहानियों ने भी वही प्रहार झेला होगा शायद। हांलाकि थीम काफी अच्छा था। लेकिन अनुवादक टैगोर जी के पात्रों के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाए। कहनियों में हिन्दी के कठिन शब्दों को जबरदस्ती डाला गया हैं जिससे पाठक अपनी लय खो देता है। किताब पढ़ते वक्त एक तरह की बोरियत महसूस होती है। ऐसा किताब की सभी कहानियों के साथ नहीं है बारह कहाँनियों में से वैष्णवी, डालिया, कंकाल, छुट्टी, सुभा, महामाया, मध्यवर्तिनी, मान-भज़ंन में जहां आप साहित्य के नए आयामों से मानव हृदय की संवेदनाओं से परिचित होते हैं वहीं...विचारक, बला, दीदी जैसी अन्य कहानियाँ मुझे सिर्फ शब्दकोश से उठाए गए कठिन शब्दों का संग्रह लगी। इनका अंग्रज़ी अनुवाद शायद ज्यादा अच्छे से लिखा गया हो। अगर लाइब्रेरी में यह किताब मिले तो एक बार पढी जा सकती है। 

October 06, 2015

Book Review : पोस्टमास्टर - रवीन्द्रनाथ टैगोर


टाइटल – पोस्ट मास्टर
लेखक – रविन्द्रनाथ टैगोर
अनुवादक – माधवानंद सारस्वत
प्रकाशक – पुस्तक संसार
रेटिंग – 4/5



'प्रसन्‍न रहना तो बहुत सहज है, परन्‍तु सहज रहना बहुत कठि‍न'
– रवीन्‍द्रनाथ टैगोर *रवीन्‍द्रनाथ टैगोर (1861 – 1941)


साहित्य के सर्वश्रेठ नॉबल पुरुस्कार से स्म्मानित रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम शिक्षा, कला, किताबें, रंगमंच, संगीत  सभी क्षेत्रों.. पर दस्तक देता है, हर विधा में पांरगत। भारत का राष्ट्रगान आप के द्वारा ही रचित है। मुख्य रूप से बंगाली में लिखने वाले टैगोर जी ने  भारत के साहित्य जगत को एक नई उचाइयों तक पहुंचाया था।

इनका लेखन किसी कालखंड विशेष वर्ग के लिए नहीं था । आज भी रवीन्द्र नाथ टैगोर सबसे अधिक पढे जाने वाले लेखको में से एक गैं। इनकी कहानियों में, कविताओं में एक तरफ मिट्टी की सौंधी खुशबू है वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी संस्कृति..साहित्य से भारत का परिचय कराने में आपने कभी परहेज नहीं किया। इनके लेखन में नियम कानून आदि लफ्ज़ बेमानी लगता है... सृजन उन्मुक्त.. और शायद इसलिए आज भी उतने ही उत्साह से पढ़ा जा रहा है।



हालाकि मैं जिस किताब की बात कर रही हूँ, वो रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहिनियों का अनुवाद मात्र है, माधवानंद सारस्वत जी ने एक अच्छी कोशिश की है, अगर आप हिन्दी में रवीन्द्र नाथ जी को पढ़्ना चाहते हैं तो किताब आपको निराश नहीं करती, हाँ अगर हिन्दी थोड़ी सरल होती तो पढ़ने में एक लय बनी रहती है.. यथा तथा रूककर नेट पर शब्दार्थ ढ़ूंढना कभी-कभी आपको थका देता है। लेकिन वहीं कहानियों का सार उनका मुख्यांश बनाये रखना बड़ी बात है यहां माधवानंद जी का प्रयास सराहनीय है।

यह किताब कुल दस कहानियों का संग्रह है जिसमें जीवन के हर पहलू का चुनकर कहानियों में ढाला गया है। संपादक ने रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों का चुनाव कुछ इस तरह किया है कि कहना मुश्किल होगा कौनसी कहानी दिल को छू गई..। 

अपरिचिता, पत्नी का पत्र, पोस्टमास्टर, दहेज़, पात्र और पात्री, एक रात, मुन्ने की वापसी, व्यवधान... इसी क्रम में पंसद की गई हैं। रामकन्हाई की मूर्खता और हालदार परिवार.. कुछ पेचीदगी के अहसास करवाती हैं, हिन्दी भाषा  में अच्छी पकड़ रखते हैं तो अवश्य पढिए।