शीर्षक: बाल नाटक
लेखक: रविन्द्रनाथ ठाकुर
प्रकाशन: राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य परिषद
शैली: रविन्द्र बाल साहित्य
आइएसबीएन: 818956207-X
संस्करण: प्रथम, 2013
स्त्रोत: लाईब्रेरी
पृष्ठ: 72
रेटिग: 4/5
रविन्द्रनाथ ठाकुर जी की कई कहानियों से
गुजरने के बाद, आज उन्हीं के द्वारा गढा हुआ बाल साहित्य हाथ लगा। हल्की फुल्की सी
किताब चंद सफहों में सिमट गई। कुछ पाँच नाटकों को संंग्रहित करके बाल मन तक पहुंचने
का बहुत ही खूबसूरत प्रयास किया गया है।
बच्चों सा साफ सरल दिल लिए पहला नाटक छात्र की
परीक्षा मन को गुदगुदा जाता है। मैं कल ही सोच रही थी, ह्यूमर ज़ोन में किताबो को
डालकर कुछ भी परोस देते हैं, या मुझे ही खुलकर हंसना नहीं आता। लेकिन इस संग्रह का
पहला नाटक ही मेरे इस भ्रम को तोड देता है, जी खोलकर हंस सकते है आप।
दूसरा नाटक प्रसिद्धि का कौतुक भी बेहतरीन
है, मुख्य पात्र एक ऐसा वकील है जिसे चंंदा देने से खास चिढ़ है, और उसकी यह चिढ
कैसे उसके लिए सिरदर्दी बन जाती है।
इसी प्रकार अन्य नाटक मुकुट, बरछी बाबा,
भी रोचक लगे।
8 से 12 साल तक के बच्चों के लिए यह किताब बहुत ही प्यारा उपहार हो
सकती है। मुझे ये बात हैरान कर गई कि गीतांजलि जैसा महाकाव्य रचने वाले ठाकुर बाबा
बच्चों की कहानियाँ भी उसी परफेक्शन से लिख गए। हमारे राजस्थान में ऐसी शख्सियत को
सम्मान देने के लिए एक ही शब्द है....ढोक (झुककर प्रणाम करना)। अवश्य पढिएगा।
किताब के प्रथम नाटक में नन्हा सा बच्चा अंकगणित के सवाल पर कुछ इस प्रकार जवाब दे रहा है।