June 28, 2016

किताब समीक्षा: अन्तराल – विजयदान देथा

टाईटल: अन्तराल
लेखक: विजयदान देथा
प्रकाशन: जनवाणी प्रकाशक
शैली: साहित्य, कहानियाँ
संस्करण: 1998
आईएसबीएन: 8186409777

राजस्थान में रहकर भी विजयदान देथा जी के साहित्य से मेरी मुलाकात कुछ दिन पहले हुई। उनकी किताब अन्तराल पढते हुए विश्वास करना मुश्किल था कि इतनी गहराई से हिन्दी में लिखा पढ रही हूँ। हर एक कहानी के पात्र और उनके अंतर्मन से गुजरने पर पहली बार एहसास हुआ कि विजयदान देथा जी को राजस्थान का शेक्सपियर क्यूँ कहा गया है, और उनकी कृति 2011 में नोबल पुरुस्कार के लिए क्यूँ नामांकित किया गया था।

लोककथाओं के जादूगर विजयदान देथा उर्फ बिज्जी की किताब अंतराल उनकी 16 बेहतरीन कहानियों का संग्रह है। हर कहानी से गुजरते वक्त रुक-रुक कर उनके शब्दो को आत्मसात करने को जी रहा था। सुगढ पात्रो को कितने भोलेपन से रचा ने देथा जी ने, शब्द ना कम ना ज्यादा। मन चाह रहा था, कुछ पक्तियों पर पेंसिल फेर लूँ। लेकिन पूरी किताब पर ये कारस्तानी करना कहाँ मुम्किन होता है। कुछ नए शब्द इजाद किए गए थे, नए अहसासो को कई रूपकों में पिरोकर पाठको को नया नज़रिया दिया गया है।

अहसासो की गहराई के साथ-साथ, उनके पात्र हंसाते भी है, चाहे वो ‘दूरी’ की हव्वा हो जो ड्राईवर की सीट से हटने को तैयार नहीं है लेकिन चाहती है अपने बेटे से मिलने तुंरत पहुंच जाए।

पछतावाइस कहानी मे वो छोटा बच्चा अपने पापा से अपने टूटे फूटे कांच के टुकडे उनकी तिजोरी में रखने की ज़िद कर बैठा है, कैसा उलझाव पैदा होता है उस पात्र में जो चाहता है मेरे बच्चे का बालपन भी बना रहे और वो दुनियावी दौड़ में पीछे भी ना छूटे। कितना जीवंत नज़र आता है सब।

हाथी काण्ड मे रानी की मूर्खता और रास्ते की तलाश मे अपने अदंर उतरने की यात्रा, इस कहानी का पात्र कहता है, कि मै पाँवो से चलता रहा कहीं नहीं पहुंच पाया, अब देखता हूँ पाँव मुझे चलाकर कहीं तो पहुंचा ही देंगे, इतना एतबार तो करना ही होगा।  

देथा जी की कहानियो मे एक बात और खूबसूरत लगी। वो था शब्दो को आवाज़ देना, साँय साँय, धुप्प, तरतराती, जैसे शब्द इस्तेमाल करके वो जीता-जागता महौल बना देते हैं। कहानी पढ़ने का आनंद साथ ही साथ इतनी बेहतर लेखनी पढ़ने पर अचरज भी होता है।

विजयदान देथा अपनी कहानियो मे अंतिम सत्य नही लिखते, सत्य भी अपने समय के अनुसार बदलता जाता है। उनका चीजो को देखने का तरीका आधुनिक है, बासा या संस्कारो के नाम पर रुढियों मे बंधा हुआ नही है। जैसे उनकी कहानी विडम्बना में शादी की पहली रात जब सिमटी-सी दुल्हन अपने पति से उसी निर्ल्ज्जता से बात करती है जैसे कुछ देर पहले वाइन ग्लास मे डूबा उसका पति कर रहा था तो वो सहन नही कर पाता, कितना सटीक चित्रण। शर्म पर लड़कियों का कोपीराईट क्यूँ हो?

इब्राहिम बैंडमास्टर, इस कहानी की जितनी तारीफ की जाए कम है, भूख और सपनो के बीच खेल-सा रच दिया है, जिसे आप पढकर शायद ही कभी भूल पाएगें, उस पात्र को जो जिन्दगी से भी ज्यादा जिन्दा है।

एक छोटी कहानी माँ बामुश्किल 2 पन्नों की है लेकिन सिहरन-सी दौड़ गयी पढते वक्त, एक माँ की कहानी जिसने कुछ दिन पहले ही अपना बच्चा खोया था. मार्मिक चित्रण, साथ थे तो बस, चन्द लम्हे और एक अहसास।

इसी प्रकार, दो तीन कहानियाँ प्रेम-रस में भी लिखी गई थी, जैसे अदीठ, कल्पना का अंत, अजर फूल, अकथ भी अपने समय से कहीं आगे जाकर अपनी दुनिया रच गयीं।
अवसर मिले तो यह संग्रह अवश्य पढिएगा।  

लेखक के बारे में

1 सिंतबर 1926 को राजस्थान के पाली जिले में जन्म लिया। करीब 800 से उपर कहानियाँ और लोक कथाएँ लिख चुके हैं। जोधपुर से करीब 100 किमी दूर कस्बेनुमा गाँव बोरूंदा में उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी। राजस्थानी में लेखन किया और लिखने के अलवा कोई काम नहीं किया। इन्हें पद्मश्री और साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया है। नाबेल पुरुस्कार के लिए नामित भी किए गए थे। अपनी छवि दुविधा नामक लोककथा से काफी प्रसिद्धि पाई।