बात
समझ में देर से आई
रात अंधेरे तारे तकना
गिन-गिन
तेरी
उंगली
पे रखना
क्यूँ
बेकस
मन को भाता है
बहते
बादल, आधा चाँद
मुझे
तुम तक क्यूँ ले जाता है
बात
समझ में देर से आई।
शाम ढले वो उजला पंछी
मन की धनक मुंडेरों पर
किस
उम्मीद
को चुगने आता है
ढाई
लफ्ज़ औ’ दो मिसरे
मेरे होंठो पर
क्यूँ रख जाता है
बात
समझ में देर से आई।
सबके
मुंह की समझाईश
क्यूँ
बेमानी हो जाती है
तेरी
हथेली कांधे पर
बेबोल ही सब कह जाती है
बेबोल ही सब कह जाती है
बात
समझ में देर से आई।
मेरे मन की गीली मिट्टी
तेरी
यादों की टप-टप सुनती है
सौंधी
बारिश, तेरी खूश्बू
इतरों
में कहाँ सम्भलती है
बात
समझ में देर से आई।
तेरे होने में अक्सर
मैं क्यूँ खुद को पा जाती हूँ
मैं क्यूँ खुद को पा जाती हूँ
दूर
पास के फेर में घुलकर
मैं
कैसे
तुम
हो जाती हूँ
बात
समझ में देर से आई
यही..बात
समझ में देर से आई।