गुलज़ार
साब को जितना पढ़ते हैं
उनकी
नज्में हमें अंदर से थोड़ा और खाली कर जाती है
खालीपन
जिसमें कुछ नही बचता सिर्फ गुलज़ार के
गुलज़ार
जो अब एक एहसास हो चुके हैं
उम्र, लफ्ज़, जिस्म
से परे..
Dedicated to Gulzar Saab |
तुम्हारी
नज्म पढ़ी
आधी से कुछ ज्यादा
पूरी से कुछ कम
आधी से कुछ ज्यादा
पूरी से कुछ कम
मेरी
आँखों के काले मोती उलझ गए
डायरी में बिखरे तुम्हारे लफ़्ज़ों से
डायरी में बिखरे तुम्हारे लफ़्ज़ों से
पलट
कर वो लम्हा मैंने
मूँद लिया पलकों को
किताब को सीने से लगाया
तो जाकर अटक गया वो
साँसों के बीच कहीं
मूँद लिया पलकों को
किताब को सीने से लगाया
तो जाकर अटक गया वो
साँसों के बीच कहीं
वो
लम्हा जिसे
आजाद होना है
या फिर कैद हो जाना है तुझमें
वो नज़्म जिसे
पूरा होना है..
आजाद होना है
या फिर कैद हो जाना है तुझमें
वो नज़्म जिसे
पूरा होना है..
या
फिर छूट जाना है मुझमें
सुनो
ना
सुनो तो
तुम्हे किसी मोड़ पर
नज़्म का वो कतरा मिले
तो छोड़ आना उसे वहीँ
मेरे लिए तुम
तुम्हारा
कुछ वक्त ले आना
सुनो तो
तुम्हे किसी मोड़ पर
नज़्म का वो कतरा मिले
तो छोड़ आना उसे वहीँ
मेरे लिए तुम
तुम्हारा
कुछ वक्त ले आना
ना
जाने कब से
अपने वजूद का दूसरा सिरा तलाशती
तुम्हारी नज्म अधूरी है..
अपने वजूद का दूसरा सिरा तलाशती
तुम्हारी नज्म अधूरी है..
- अंकिता
चौहान
यह मैं भी एक नज्म होत्ती(2014) का शायद जुड़्वा हिस्सा होगा.. जो अगस्त गुलज़ार है(2015) से होता हुआ 2016 तक मेरे साथ चला आया..18 अगस्त जन्मदिन विशेष!