टाइटल: शिक्षाप्रद कहानियाँ
लेखक: रविन्द्रनाथ टैगोर
प्रकाशक: मनोज पब्लिकेशंस
वितरक: अनु प्रकाशन
संस्करण: 2011
रेटिंग: 5/5
किताब का शीर्षक पढकर मैं थोड़े संशय में
थी कि रविन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों में रिश्तों की बारीकियाँ, मनोभावों का सटीक चित्रण, प्रेमरस
में डूबी प्रकृति की अभिव्यक्ति मिलती है। टैगोर जी ने शिक्षाप्रद कहानियाँ भी
लिखी हैं..? प्रश्न उत्सुकता भरा था।
किताब खोली गई.. सत्रह बेहतरीन कहानियों
का संग्रह है यह किताब, जिसमें चुन-चुन कर टैगोर जी की बेहद खूबसूरत कहानियों को
माला में मोतियों की तरह पिरोया गया है। भाषा की सरलता और शब्दों का सही चुनाव
पाठकों को अंतिम पृष्ठ तक बांधे रखता है। रविन्द्र जी का लेखन साहित्य जगत के कई
आयाम छू चुका है। लेकिन इन कहानियों के अनुवाद से कभी कभी कहानी की आत्मा, उसका मुख्य सार लुप्त हो जाता है
लेकिन मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी हो रही है कि यह किताब उन सभी मापदंडों पर खरी
उतरती है।
सभी कहानियों के पात्र एक लेखक के द्वारा
लिखे गए है फिर भी कितने अलग हैं। यह किताब मानवीय भावनाओं का इन्द्रधनुष लगती है।
जहां पोस्टमास्टर में एक बेनाम रिश्ते में
आई विरह वेदना है तो वहीं मुन्ने की वापसी
में प्रायश्चित का एक अनोखा रूप दिखता है। मालादान में मज़ाक की हद और रिश्ते पर
पड़ते उसके प्रभाव तो दृष्टिदान में पति का अहम और पत्नी के निस्वार्थ प्रेम को बुना गया है, जिसका अंत
मर्मांतक था।
देशभक्त, दुराशा, श्रद्धांजलि, सुभाषिणी, धन
का मोह, हेमू आदि कहानियाँ दीपक की रोशनी के नीचे पलते अंधेरे की तरह है जो हमेशा
वजूद में होता है लेकिन सबको महसूस नही होता।
अपनी कहानियों के पात्रों का इतना बारिकी
से अध्ययन उनको कहानियों में पिरोना और रूपक अंलकार...मेटाफोर्स का इतना अच्छा
प्रयोग टैगोर जी के अलावा शायद ही कोई कर पाता है। अवश्य पढ़िए.. अपनी बुकशेल्फ में
जगह दीजिए।