October 19, 2015

Book Review : Vaishnavi by Rabindranath Tagore

टाइटल: वैष्णवी
लेखक: रबिन्द्रनाथ टैगोर
अनुवादक: माधवानन्द सारस्वत
पब्लिशर: विवेक पब्लिशिंग हाउस
रेटिंग: 3/5


रबिन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों की अपनी एक दुनिया है एक अलग मुकाम। टैगोर जी की कहानियों को किसी कालखंड में नहीं समेटा जा सकता... जिस तरह वो हर एक अहसास को अपने कहानियों के किरदारों में दिखाते है..हर एक भाव को व्यक्त करते है, अतुल्नीय है। लेकिन कभी कभी जब आप भाषा की अनभिज्ञता के कारण किसी किताब का अनुवाद पढ़ते तो लेखक की कलम का वास्तविक तत्व कहीं खो जाता है। इस किताब की कुछ कहानियों ने भी वही प्रहार झेला होगा शायद। हांलाकि थीम काफी अच्छा था। लेकिन अनुवादक टैगोर जी के पात्रों के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाए। कहनियों में हिन्दी के कठिन शब्दों को जबरदस्ती डाला गया हैं जिससे पाठक अपनी लय खो देता है। किताब पढ़ते वक्त एक तरह की बोरियत महसूस होती है। ऐसा किताब की सभी कहानियों के साथ नहीं है बारह कहाँनियों में से वैष्णवी, डालिया, कंकाल, छुट्टी, सुभा, महामाया, मध्यवर्तिनी, मान-भज़ंन में जहां आप साहित्य के नए आयामों से मानव हृदय की संवेदनाओं से परिचित होते हैं वहीं...विचारक, बला, दीदी जैसी अन्य कहानियाँ मुझे सिर्फ शब्दकोश से उठाए गए कठिन शब्दों का संग्रह लगी। इनका अंग्रज़ी अनुवाद शायद ज्यादा अच्छे से लिखा गया हो। अगर लाइब्रेरी में यह किताब मिले तो एक बार पढी जा सकती है।