Originally Published at Gaon Connection
दिन में गड़गड़ाते काले बादल, बहती हुई बारिशें,
पेड़ो के नीचे छुपकर गीले पंखो को झाड़ते पंछी।
रातों में दूर तक फैली ठण्डी रेत में कभी नंगे
पैर चलना, तो कभी आसमान में दौड़ते उस चाँद का हाथ फैलाए पीछा करना।
नहीं ये कोई कविता नहीं है। ये सब मेरे बचपन की
यादें है.. कुछ बेमोल अनुभव। यही बिखरी हुई तस्वीरें जो मुझे आज भी गाँवो की कच्ची
महक से जोडे हुए हैं। बारिश की उसी सौंधी खुशबू के साथ।
बचपन में वनस्थली विद्यापीठ सबके लिए एक महिला
शिक्षण
संस्थान था वहीं मेरे लिए मेरी नानी का घर। राजस्थान के टोंक-निवाई जिले
में बसा वनस्थली, निवाई के रेलवे स्टेशन से करीब दस किलोमीटर दूर है। लगभग 1000
एकड में फैली ये जगह, बीते कुछ सालों में काफी प्रगति कर चुकी है, लगता है जैसे
शहरीकरण हो गया हो। यूनिवर्सिटी में पन्द्रह हजार से उपर लड़कियाँ पढ़ती हैं। लेकिन जब
मैं उस बीस साल पुरानी वनस्थली को याद करती हूँ तो शायद उससे बेहतर मेरी दुनिया
में कोई जगह नहीं मिलती।
गाँव शहरों
की तरह भागते नहीं हैं वो कभी आपको पीछे नहीं छोड़ते। आपके साथ खड़े होते है। वनस्थली
में भी एक ठहराव था। जिंदगी रुकी हुई नहीं थी, सुकून भरी थी।
Photo Courtesy - Ajendra Singh Bhadoria |