हवा में ठंडक थी। अलसाई रात को नर्म बादलों में समेट,
खिड़की से झीनी-झीनी सुबह झांक रही थी। मेरा मन अधखुली आँखों पर चादर डाले करवटों
के इर्द-गिर्द कुछ ख्वाब बुनने लगा, ख्वाब...जो उस शाम विनय ने मेरी इन गहरी पलकों
पर रख दिए थे। उस दिन ऑफिस-मीटिंग के बीच में अपनी बॉस की नज़रें बचाकर उसने मुझे
मैसेज किया—
“पैकिंग करना शूरू कर दे मेरी एलिज़ाबेथ, वी आर
गोइंग टू कैनेडा...सून” उस सून की स्पैलिंग में लगे बीसीयों ‘ओ’ विनय की
खुशियों का पता मेरे होंठों को दे रहे थे। खुश थी मैं, इन बीते आठ महीनों से ज़िंदगी जैसे मुझपर मेहरबान
थी।
राजस्थान से नोएडा और नोएडा से राजस्थान के बीच
अपनी ज़िंदगी के बाईस साल काटने वाली रेवा, यानि मैं पहली बार परदेस जा रही थी। ।
मेरी आने वाली ज़िंदगी अपने दायरे से निकलकर नए साज...नई धुनों पर थिरकना चाहती थी।
इस बीच विनय ने मेरी सैँडल हील्स से लेकर, मोबाईल
की रिंगटोन तक बदल डाली थी “लेट मी बी योर हीरो..”। पार्टीज के दौर चलने लगे थे। उधर वो अपने
दोस्तों से, कैनेडा में ढाई साल के प्रोजेक्ट की बँधाईयाँ समेट रहा था और इधर मैं
चन्द सूकून भरे लम्हें...या कहूँ जरा-सी हिम्मत तलाश कर रही थी।
Show Title: Qisson Ka Kona with Neelesh Misra