Story Title: Lamhe Guzar Gaye
Show Title: Qisson Ka Kona with Neelesh Misra
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उम्र की दहलीज़ पर एक और दिन ढल रहा था। शाम के
सात बज चुके थे। मैं इस कॉटेज़ की बॉलकनी में खड़ा...सामने फैले उस लाल सूरज़ को
समुद्र में डुबकियाँ लगाते देख रहा था।
अकेला, चुप, खाली...आज हाथों में ना तो कोई काम
था, ना ही कोई ऑफिस की फाईल। बस बालकनी की इस रेलिंग को कसकर थामे जैसे मैं भागते
वक़्त को...रोकना चाह रहा था। थामना चाह रहा था उन लम्हों को, जो पिछले तीन सालों
से एक रिश्ते का चेहरा ढूंढते हुए मुसाफिर-से हो गए थे।
जैसे-जैसे सूरज रात की बाहों में समाने लगा, तो
शोर मचाती अवारा लहरें भी अलसाने लगी जैसे शाम ढलने पर वो भी अपने घर लौट आयी हों,
मेरी तरह...।
नहीं...ये घर, ये कॉटेज़ मेरा नहीं था। मैं, तो
अपनी ज़िंदगी में पहली बार केरला आया था, पहली बार समुद्र देखा था, गीली रेत पर
बिखरी सिपियाँ देखी थी, पहली बार कोई बीच देखा था।
और पाँच दिन के लिए, इस केरल बीच पर, जिसके साथ
आया था वो अंदर कमरे में लेटी हुई थी। मैंने पलटकर खिड़की की ओर देखा तो गुलाबी
परदों के पीछे से उसकी वो हल्की-सी झलक मिली। वो ऊन के किसी नर्म गोले की तरह
बिस्तर में सिमटी पडी थी। परदों से छनकर आती रोशनी के टुकड़े उसकी आँखों पर ठहरे थे
और रेशमी बालों की वो लम्बी-सी चोटी बिस्तर से नीचे की ओर ढलकी हुई थी, वो पूर्वी
थी...मेरी पत्नी।