November 21, 2015

मिठास - कहानी

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अब वो वृद्धा मेरे लिए उतनी अनजान नहीं रही। आरोग्यशाला के इस छोटे से कक्ष में मेरी नज़र...अक्सर उनकी सूकून भरी मुस्कान पर जाकर ठहर जाती। रोज सुबह उनका बेटा मिलने आता...हाथ में एक टिफिन और बाज़ू में अखबार दबाए। लेकिन उनका मुख्य शगल खिड़की के बाहर उड़ते कबूतर...छज्जे पर टंगे गमलों को अपलक देखना था। डाइबिटीज़ ने...स्वस्थ दिखने वाली उस वृद्धा का दाहिना पैर निगल लिया था..एमप्यूटेशन।

मैंने कारण पूछा तो बोली मैं कुछ ज्यादा मीठी हो गई थी...सोचती हूँ यह मिठास...समाज़ में घुल जाती तो मैं भी अखबार पढ़ पाती...देखो ना रिश्तों की तरह बेजान पड़ा रहता है।

November 20, 2015

RELIGION DIVIDES TEA UNITES - A Short Story

After giving a fair boil, he started filtering that liquid into small white plastic cups.  His eyes were keenly observing that dribble but he left his ears on the words, bouncing from radio. The news was terribly painful, about attacks, killings and religion. He glanced at the customers… waiting for their tea-cups and then he read his sign board… his heart sank.

“Khan Bhaiya, One cup…Strong one” someone said.

He sighed with great relief and started serving that divine drink with a thought “Is there any problem that tea can’t resolve." 


- Ankita Chauhan 

P.s - Thank You OneFrameStories for featuring my story under Top 4.  

November 15, 2015

Unspoken Code - Short Story

“Stay away. I’m not even sharing road with you.”
“I think we’re best friends, don’t we?”
“Best friends?  You do all the ill deeds and hide away, and teachers bestow all the due blessings on me, Best Friends…huh!”
“ill deeds?”
“Don’t pretend, you think you put bombs under Miss Marie’s chair and she would kiss you, you were the one who drilled a big whole into Tabla while music class just to check mysterious source of sounds, and aftereffects still ringing in my ears.”
“Yellow flowers, sign of friendship, take it.”

“You’re the worst friend, you know that?” 

- Ankita Chauhan 

Featured Under Top 4 

आधा हिस्सा - लघु कथा

Photo Credit - Vivek Arya
नवम्बर की शामें थोड़ी और सर्द हो चली थी। चिनार-ब्रिज पर रविवार मनाने आते लोगों का आना कुछ कम हो गया था। 

साल में मौसम भी चार करवट बदलता था, लेकिन उस लड़की की दिनचर्या नहीं। सुबह से शाम तक अपनी नाज़ुक हथेलियों को फैलाकर...कभी गीत गुनगुना कर, जो कुछ इकठ्ठा कर पाती, अपनी बहन के साथ बाँट लेती। 

आस-पास गुजरते लोगों की नज़रों में दया होती और उस निरीह के अधरों पर जवाब

अपना आधा-हिस्सा नहीं, 
अपने जिस्म के आधे-हिस्से को खिला रहीं हूँ, 
हिस्सा जो मुझे हर सुबह उठने की उम्मीद देता है, 
और शाम ढलते जीने की वजह।"  

- Ankita Chauhan (Wrote for AajSirhaane

November 10, 2015

अपने हाथों की लकीरों में – क़तील शिफ़ाई

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछ्ने आया है वफा के मानी
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको

मैं समन्दर भी हूँ मोती भी हूँ गोताज़न भी
कोई भी नाम मेरा ले के बुला ले मुझको

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या ना रहूँ
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको

तर्क-ए-उल्फत की कसम भी कोई होती है कसम
तू कभी याद तो कर भुलाने वाले मुझको

बादा तो फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ क़तील
शर्त ये है कोई बाहों में संभाले मुझको

 – क़तील शिफ़ाई


(कतील शिफाई जी के लफ्ज़ों को, अपनी आवाज़ देने की एक हिमाकत..)

November 08, 2015

संयोग : लघु कथा


'आज सिरहाने' हिन्दी भाषा के चाहने वालों के लिए एक बेहद खूबसूरत जगह है। जहाँ दिए गए एक शब्द पर 101  शब्दों में लघु कथा लिखनी होती है। अपने लेखन को निखारने का एक बेहतरीन माध्यम । अपने दिल के अहसासों को कहने का एक खूबसूरत ज़रिया.. लेखन में रूचि है तो अवश्य जुड़िए!

Aaj Sirhaane



November 07, 2015

Short Story : Wife or Husband

The hesitation, profound as kaajal, smearing under her eyes, her fingertips counting the strangers, who addressing her as “New Mamma”, although she had learnt about concept of marriage through her friends, Two bodies—one soul. Her gullible friends might have forgotten to count the kids i.e. five bodies…and One soul?


With empty eyes, her shaking breath, searching for the person she tied knot with, past night.  Here she could only found the bare room suffocated with some whispering utterance, “Second-Wife”.  She was smiling at their stupidity because those experienced people couldn’t even determine who the second one is. 

- Ankita Chauhan 



November 06, 2015

Book Review: Grief is the Thing with Feathers by Max Porter


Book Title: Grief is the Thing with Feathers
Author:  Max Porter
Genre:  Literary Fiction, Novella
Publisher: Faber & Faber 
Pages: 128
Rating: 4/5

CROW
In other versions I am a doctor or a ghost. Perfect devices: doctors, ghosts and crows. We can do things other characters can’t, like eat sorrow, un-birth secrets and have theatrical battles with language and God. I was friend, excuse, deus ex machina, joke, symptom, figment, spectre, crutch, toy, phantom, gag, analyst and babysitter.
I was, after all, ‘the central bird … at every extreme’. I’m a template. I know that, he knows that. A myth to be slipped in. Slip up into.
Inevitably I have to defend my position, because my position is sentimental. 

I read about this book on some review blog and that made me curious to explore it. Basically it is written in a texture of novella, poetry or simply a short fiction. The fiction which hardly left anyone without realizing what our reality is. I mean, Loss of our loved ones can’t be just a fiction. I experienced it so I connected deeply with the moments, author weaved in the book. 

Loss and pain in the world is unimaginable but I want them to try.

It is all about wreckage, moments and conversations more than some story-line.  The book is kind of void wrapped with feeling of grief. When a lady of the family left the world, how her husband and two boys were trying to cope up with the reality and then author introduced a third element A Crow. A metaphor more than a mere bird, book is designed in a way where every character of the book speaks for itself alternatively and somewhere it seemed ,  author put his thoughts into the crow’s section. Sometimes it seemed witty along with grey humour and sometimes it seemed a poignant tale of a person who just lost his love of life. The narrative style was different still impressive.  

This Book will hardly take your couple of an hour but you feel like to read it again to sense it properly. As I mentioned earlier it is not some storybook, it is a void wrapped with lifelong grief, and author added few superfluous adjectives that enhanced the feelings which made us eager to read the book.  If you try to read some amazing, short and more than a novel thing, it would surely be a Great Read.  

Excerpt: 
Moving on, as a concept, is for stupid people, because any sensible person knows grief is a long-term project. I refuse to rush. The pain that is thrust upon us let no man slow or speed or fix.

Introduction: Crow’s Bad Dream I miss my wife
Ch. 1. Magical Dangers I miss my wife
Ch. 2. Reign of Silence I miss my wife
Ch. 3. Unkillable Trickster I miss my wife
Ch. 4. Aphrodisiac Disaster I miss my wife
Ch. 5. Tragic Comedy I miss my wife
Ch. 6. The Baby (God) in the Lake I miss my wife
Ch. 7. The Song I miss my wife
Conclusion: Recovery and Growth I miss my wife

About The Author:
Max Porter trained as an art historian but his career took him in to the world of books. He previously managed an independent bookshop and won the Young Bookseller of the Year award in 2009. Max joined Granta and Portobello Books in 2012. This book is his Debut Work.

November 04, 2015

हैप्पी बर्थ डे... इति



ऐसे पल कभी-कभी ही मिलते है मुझे, जब कमरे में अकेली होती हूँ.. वरना अपना ही वक़्त चुराना पड़ता है, आस पास चलती जीवन गति से। वो थोड़ा सा वक्त पूरी तरह से किताबों के बीच बीतता है..किताब के पन्नों में महफूज़ रहता है।

आज ऐसा ही एक दिन था। कमरे में अकेली थी, घड़ी की सूईयों के बीच होती बातचीत को समझने की कोशिश कर रही थी। खिड़की के बाहर देखा तो इस गुलाबी सी ठंड में हमेशा अपनी शाखाओं से हिलोरें लेता पेड़ आज शांत खड़ा था, एकदम स्थिर। जैसे धीमे धीमे सूरज़ से आती गुनगुनी धूप सेंक रहा हो।

मैंने अपने तकिए के पास रखी किताब उठाई..अमृता प्रीतम की कहानियाँ बुकमार्क हटाया और तीन चार पंक्तियाँ पढ़ लेने के बाद उसी सलीके से बुकमार्क को अपनी जगह लगाया और नज़रें फिर उसी पेड़ पर जा टिकी।

अक्सर सबको चुप करा देती हूँ प्लीज़ चुप रहो..पढ़ने दो और आज जब पूरा घर खाली है.. तो मन किताब को उठाने में भी कतरा रहा है, कभी कभी खामोशी भी अपने आप में शोर लगती है।

मोबाईल उठाया, दिन के बारह बज चुके थे। मैंने मोबाईल की कॉंटेक्ट लिस्ट खोली, मुश्किल से 30 नम्बर सेव है। ये खेल मैं अक्सर खेला करती हूँ, स्क्रोल अप स्क्रोल डाउन स्क्रोल अप.. एंड एक्सिट। अपने समय पर मेरा अधिकार है जिस तरह खराब करना है करती हूँ पर सबको क्यूँ परेशान करूँ। यह सोचकर ना जाने कितने कॉल्स ओवरथिंकिग की भेंट चढ़ जाते हैं।

आज भी यही कर रही थी कि उंगलियाँ एक नम्बर पर आकर ठहर गयी। थोड़ी हिचकिचाहट के साथ मैंने नम्बर प्रेस कर दिया।

आप जिस नम्बर पर बात करना चाहते है वो किसी और कॉल पर व्यस्त हैं मैं बुझे मन से कॉल डिस्कनेक्ट करने ही वाली थी कि दूसरी तरफ से खनकती हुई आवाज़ आई।

हाई कैसी हो.. आज हम इतु का बर्थ डे सेलीब्रेट कर रहे हैं तो उसी में बिज़ी थी, काफी तैयारियाँ करनी हैं।

इति मेरी फ्रेंड आकांक्षा की बेटी है और आज जन्मदिन है उसका, और मेरा अचानक से उसे कॉल लगाना कॉइंसिडेंस था, बेहद खूबसूरत संयोग। हांलाकि इति से मिली नहीं हूँ कभी लेकिन उसकी फेसबुक पर हर दिन दिखती तस्वीरों से, इतनी अज़नबी भी नहीं है इति मेरे लिए...मैं इति के जन्मदिन की शुभकामनाएँ आंकाक्षा को देने लगी तो उसने कहा

तुम खुद विश कर दो और उसने इति को मोबाईल पकड़ा दिया।

बच्चों से बात करना बहुत पंसद है मुझे, लेकिन इसमें एक किस्म का डर, या कहें रिस्क भी होता है। जब तक आप उनसे रू-ब-रू नहीं मिलते, उनके साथे समय व्यतीत नहीं करते.. उनकी बातों को तरजीह नहीं देते तो बिना किसी लाग-लपेट के आपके अस्तित्व को ठुकरा देते हैं।
अपने डर को किनारे रखते हुए मैंने धीमे से कहा

हैप्पी बर्थ डे इति

 “थैंक यू माशी दूसरी तरफ से उत्तर मिला। वो मासूम आवाज़... वो सम्बोधन ऐसा लगा मानो कान में इस आवाज़ ने सातों सुर घोल दिए हों। मैं मुस्कुरा रही थी, सोच रही थी अब आगे क्या? जानती कहाँ हूँ मैं इति को, क्या पूँछू?

बच्चों से बात करना इसलिए भी पंसद है कि आप उन्हें सुन सकते हैं वो इस बात का इंतज़ार नहीं करते कि सामने से कोई उत्तर आएगा। वो अपनी ही दुनिया में रमे होते हैं और आप खुद को खुशनसीब समझिए अगर वो आपको भी अपनी रंगो से भरी काल्पनिक दुनिया का हिस्सा बना लें तो।

पर यहाँ मैं एक ऐसे बच्चे से बात कर रही थी जिसके व्यवहार के बारे में एकदम अनज़ान थी मैं.. मुझे तो उसकी उम्र भी नही पता शायद चार या पांच साल। लेकिन उसकी बातों से लगा वो मुझे अच्छे से जानती है। मुझे जरूरत ही नहीं पड़ने दी कि मैं कुछ कहूँ। इति अपनी मीठी से भोली सी आवाज़ में बोली

माशी आप क्यूट हो. मैं हंस दी। वो बस बोले जा रही थी... मैं चुपचाप उसे सुन रही थी, मेरे बारे में इतना कुछ जानती है, यह एक सरप्राइज़ था मेरे लिए। मैं जो हज़ार शब्दों के ब्लोग आसानी से लिख देती हूँ लेकिन इति की इन प्यारी-प्यारी बातों के लिए कोई जवाब नहीं मिल रहा था.. अल्फाज़ जैसे खो से गए। बस उसके जवाब में लव यू इति ही कह पाई।

उस नन्ही सी इति ने आज शब्दों में हरा दिया था मुझे, फिर भी लग रहा था जीत गई हूँ, आँखों के कोरो पर नमी थी। एक पल को लगा शायद आंकाक्षा पास ही खड़ी हो। ये शब्द शायद उसके हों जो कि इति दोहरा रही हो। लेकिन मैं गलत दी.. मेरे होठों को अपनी कीमती मुस्कान रख कर उसने कहा

लो आप अब ममा से बात करो उसके कदमों की आहट, उसकी आवाज़ की उँचाई बता रही थी कि जिन प्यारे प्यारे शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया था वो इति के ही थे, अपने जन्मदिन पर उसने मुझे ढेर सारी खुशी दे दी थी और एक प्यारा सा अहसास, एक सम्बोधन, एक रिश्ता, माशी 

फॉन रखने के बाद, देर तक सोचती रही कि जैसी आकांक्षा खुद है, हमेशा दूसरों की फिक्र करने वाली, बिन कहे अपने दोस्तों के मन को पढ़ लेने वाली, वो शायद अपनी बेटी को खुद से भी बेहतर इंसान बनाने की कोशिश कर रही है। वरना इतना प्यार किसी अजनबी के लिए, दूसरों में अच्छाईयाँ देखने की नज़र पैदा की है उसने अपनी इति में, शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढाने के साथ साथ उसने यह भी तय किया है कि उचाइयाँ छूने की ललक में जो पास में है वो कहीं पीछे ना छूट जाए। बहुत खुश हूँ आकांक्षा अपनी इति को रिश्तो को करीब से महसूस करना सिखा रही है, बेहतर ग्रेडस के साथ-साथ बेहतर इंसान भी बना रही है।





जब इति बड़ी हो जाएगी थोड़ी और समझदार्, तो  शायद वो यह ब्लोग पढ़े, और तब तक शायद मैं उससे यह कहने के लिए रहूँ या ना रहूँ...इसलिए लिख रही हूँ  

अपने जन्मदिन पर मुझे इतनी सारी खुशी देने के लिए

इस खूबसूरत अहसास के लिए, इस बेहद प्यारे रिश्ते के लिए..
दिल से धन्यवाद...

हैप्पी बर्थ डे... इति,
योर माशी लव्ज़ यू.. ढेर सारा

 - Ankita Chauhan