अपने
हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं
हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको
मुझसे
तू पूछ्ने आया है वफा के मानी
ये
तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको
मैं
समन्दर भी हूँ मोती भी हूँ गोताज़न भी
कोई
भी नाम मेरा ले के बुला ले मुझको
कल
की बात और है मैं अब सा रहूँ या ना रहूँ
जितना
जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको
तर्क-ए-उल्फत
की कसम भी कोई होती है कसम
तू
कभी याद तो कर भुलाने वाले मुझको
बादा
तो फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ क़तील
शर्त
ये है कोई बाहों में संभाले मुझको
– क़तील शिफ़ाई
(कतील शिफाई जी के लफ्ज़ों को, अपनी आवाज़ देने की एक हिमाकत..)