November 15, 2015

आधा हिस्सा - लघु कथा

Photo Credit - Vivek Arya
नवम्बर की शामें थोड़ी और सर्द हो चली थी। चिनार-ब्रिज पर रविवार मनाने आते लोगों का आना कुछ कम हो गया था। 

साल में मौसम भी चार करवट बदलता था, लेकिन उस लड़की की दिनचर्या नहीं। सुबह से शाम तक अपनी नाज़ुक हथेलियों को फैलाकर...कभी गीत गुनगुना कर, जो कुछ इकठ्ठा कर पाती, अपनी बहन के साथ बाँट लेती। 

आस-पास गुजरते लोगों की नज़रों में दया होती और उस निरीह के अधरों पर जवाब

अपना आधा-हिस्सा नहीं, 
अपने जिस्म के आधे-हिस्से को खिला रहीं हूँ, 
हिस्सा जो मुझे हर सुबह उठने की उम्मीद देता है, 
और शाम ढलते जीने की वजह।"  

- Ankita Chauhan (Wrote for AajSirhaane