ऐसे पल कभी-कभी ही मिलते है मुझे, जब कमरे
में अकेली होती हूँ.. वरना अपना ही वक़्त चुराना पड़ता है, आस पास चलती जीवन गति से।
वो थोड़ा सा वक्त पूरी तरह से किताबों के बीच बीतता है..किताब के पन्नों में महफूज़
रहता है।
आज ऐसा ही एक दिन था। कमरे में अकेली थी,
घड़ी की सूईयों के बीच होती बातचीत को समझने की कोशिश कर रही थी। खिड़की के बाहर
देखा तो इस गुलाबी सी ठंड में हमेशा अपनी शाखाओं से हिलोरें लेता पेड़ आज शांत खड़ा
था, एकदम स्थिर। जैसे धीमे धीमे सूरज़ से आती गुनगुनी धूप सेंक रहा हो।
मैंने अपने तकिए के पास रखी किताब उठाई..”अमृता प्रीतम की कहानियाँ” बुकमार्क हटाया और तीन चार पंक्तियाँ पढ़
लेने के बाद उसी सलीके से बुकमार्क को अपनी जगह लगाया और नज़रें फिर उसी पेड़ पर जा
टिकी।
अक्सर सबको चुप करा देती हूँ प्लीज़ चुप
रहो..पढ़ने दो और आज जब पूरा घर खाली है.. तो मन किताब को उठाने में भी कतरा रहा
है, कभी कभी खामोशी भी अपने आप में शोर लगती है।
मोबाईल उठाया, दिन के बारह बज चुके थे।
मैंने मोबाईल की कॉंटेक्ट लिस्ट खोली, मुश्किल से 30 नम्बर सेव है। ये खेल मैं
अक्सर खेला करती हूँ, स्क्रोल अप स्क्रोल डाउन स्क्रोल अप.. एंड एक्सिट। अपने समय
पर मेरा अधिकार है जिस तरह खराब करना है करती हूँ पर सबको क्यूँ परेशान करूँ। यह
सोचकर ना जाने कितने कॉल्स ओवरथिंकिग की भेंट चढ़ जाते हैं।
आज भी यही कर रही थी कि उंगलियाँ एक नम्बर
पर आकर ठहर गयी। थोड़ी हिचकिचाहट के साथ मैंने नम्बर प्रेस कर दिया।
“आप जिस नम्बर पर बात करना चाहते है वो
किसी और कॉल पर व्यस्त हैं” मैं बुझे मन से कॉल डिस्कनेक्ट करने ही
वाली थी कि दूसरी तरफ से खनकती हुई आवाज़ आई।
“हाई कैसी हो.. आज हम इतु का बर्थ डे
सेलीब्रेट कर रहे हैं तो उसी में बिज़ी थी, काफी तैयारियाँ करनी हैं।“
इति मेरी फ्रेंड आकांक्षा की बेटी है और
आज जन्मदिन है उसका, और मेरा अचानक से उसे कॉल लगाना कॉइंसिडेंस था, बेहद खूबसूरत
संयोग। हांलाकि इति से मिली नहीं हूँ कभी लेकिन उसकी फेसबुक पर हर दिन दिखती
तस्वीरों से, इतनी अज़नबी भी नहीं है इति मेरे लिए...मैं इति के जन्मदिन की
शुभकामनाएँ आंकाक्षा को देने लगी तो उसने कहा—
“तुम खुद विश कर दो” और उसने इति को मोबाईल पकड़ा दिया।
बच्चों से बात करना बहुत पंसद है मुझे,
लेकिन इसमें एक किस्म का डर, या कहें रिस्क भी होता है। जब तक आप उनसे रू-ब-रू
नहीं मिलते, उनके साथे समय व्यतीत नहीं करते.. उनकी बातों को तरजीह नहीं देते तो
बिना किसी लाग-लपेट के आपके अस्तित्व को ठुकरा देते हैं।
अपने डर को किनारे रखते हुए मैंने धीमे से
कहा—
“हैप्पी बर्थ डे इति”
“थैंक यू माशी” दूसरी तरफ से उत्तर मिला। वो मासूम आवाज़...
वो सम्बोधन ऐसा लगा मानो कान में इस आवाज़ ने सातों सुर घोल दिए हों। मैं मुस्कुरा
रही थी, सोच रही थी अब आगे क्या? जानती कहाँ हूँ मैं इति को, क्या पूँछू?
बच्चों से बात करना इसलिए भी पंसद है कि
आप उन्हें सुन सकते हैं वो इस बात का इंतज़ार नहीं करते कि सामने से कोई उत्तर
आएगा। वो अपनी ही दुनिया में रमे होते हैं और आप खुद को खुशनसीब समझिए अगर वो आपको
भी अपनी रंगो से भरी काल्पनिक दुनिया का हिस्सा बना लें तो।
पर यहाँ मैं एक ऐसे बच्चे से बात कर रही थी
जिसके व्यवहार के बारे में एकदम अनज़ान थी मैं.. मुझे तो उसकी उम्र भी नही पता शायद
चार या पांच साल। लेकिन उसकी बातों से लगा वो मुझे अच्छे से जानती है। मुझे जरूरत
ही नहीं पड़ने दी कि मैं कुछ कहूँ। इति अपनी मीठी से भोली सी आवाज़ में बोली—
“माशी आप क्यूट हो.” मैं हंस दी। वो बस बोले जा रही थी... मैं
चुपचाप उसे सुन रही थी, मेरे बारे में इतना कुछ जानती है, यह एक सरप्राइज़ था मेरे
लिए। मैं जो हज़ार शब्दों के ब्लोग आसानी से लिख देती हूँ लेकिन इति की इन प्यारी-प्यारी
बातों के लिए कोई जवाब नहीं मिल रहा था.. अल्फाज़ जैसे खो से गए। बस उसके जवाब में “लव यू इति” ही कह पाई।
उस नन्ही सी इति ने आज शब्दों में हरा
दिया था मुझे, फिर भी लग रहा था जीत गई हूँ, आँखों के कोरो पर नमी थी। एक पल को
लगा शायद आंकाक्षा पास ही खड़ी हो। ये शब्द शायद उसके हों जो कि इति दोहरा रही हो।
लेकिन मैं गलत दी.. मेरे होठों को अपनी कीमती मुस्कान रख कर उसने कहा—
“लो आप अब ममा से बात करो” उसके कदमों की आहट, उसकी आवाज़ की उँचाई
बता रही थी कि जिन प्यारे प्यारे शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया था वो इति के ही
थे, अपने जन्मदिन पर उसने मुझे ढेर सारी खुशी दे दी थी और एक प्यारा सा अहसास, एक
सम्बोधन, एक रिश्ता, “माशी”।
फॉन रखने के बाद, देर तक सोचती रही कि “जैसी आकांक्षा खुद है, हमेशा दूसरों की
फिक्र करने वाली, बिन कहे अपने दोस्तों के मन को पढ़ लेने वाली, वो शायद अपनी बेटी
को खुद से भी बेहतर इंसान बनाने की कोशिश कर रही है। वरना इतना प्यार किसी अजनबी
के लिए, दूसरों में अच्छाईयाँ देखने की नज़र पैदा की है उसने अपनी इति में, शहर के
सबसे अच्छे स्कूल में पढाने के साथ साथ उसने यह भी तय किया है कि उचाइयाँ छूने की
ललक में जो पास में है वो कहीं पीछे ना छूट जाए। बहुत खुश हूँ आकांक्षा अपनी इति
को रिश्तो को करीब से महसूस करना सिखा रही है, बेहतर ग्रेडस के साथ-साथ बेहतर
इंसान भी बना रही है।
जब इति बड़ी हो जाएगी थोड़ी और समझदार्,
तो शायद वो यह ब्लोग पढ़े, और तब तक शायद
मैं उससे यह कहने के लिए रहूँ या ना रहूँ...इसलिए लिख रही हूँ—
“अपने जन्मदिन पर मुझे इतनी सारी खुशी देने के लिए
इस खूबसूरत अहसास के लिए, इस बेहद प्यारे
रिश्ते के लिए..
दिल से धन्यवाद...
हैप्पी बर्थ डे... इति,
योर माशी लव्ज़ यू.. ढेर सारा”
- Ankita Chauhan
- Ankita Chauhan