November 21, 2015

मिठास - कहानी

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अब वो वृद्धा मेरे लिए उतनी अनजान नहीं रही। आरोग्यशाला के इस छोटे से कक्ष में मेरी नज़र...अक्सर उनकी सूकून भरी मुस्कान पर जाकर ठहर जाती। रोज सुबह उनका बेटा मिलने आता...हाथ में एक टिफिन और बाज़ू में अखबार दबाए। लेकिन उनका मुख्य शगल खिड़की के बाहर उड़ते कबूतर...छज्जे पर टंगे गमलों को अपलक देखना था। डाइबिटीज़ ने...स्वस्थ दिखने वाली उस वृद्धा का दाहिना पैर निगल लिया था..एमप्यूटेशन।

मैंने कारण पूछा तो बोली मैं कुछ ज्यादा मीठी हो गई थी...सोचती हूँ यह मिठास...समाज़ में घुल जाती तो मैं भी अखबार पढ़ पाती...देखो ना रिश्तों की तरह बेजान पड़ा रहता है।