December 06, 2015

कोरे खत - कहानी


दशक बीत चले थे.. शीरोमां रूमानी लम्हों से कागजी लहज़ों तक का सफर तय कर चुकी थीं...बालों पर चांदी...चेहरे पर अनुभवों की आड़ी-तीरछी लकीरें...और संजीदगी ओढे, आज एक जीवन मृत्युशय्या पर लेटा था। मुंह में गंगाजल डाला जा चुका था..लेकिन शीरोमा के हाथों में लिपटे वो खत हटाने की हिम्मत किसी की नहीं थी।
पता नहीं...क्या पढ़्ती थी इन कोरे कागज़ों में
शादी के बाद...शीरोमा की बेटी भेजा करती थी..
कोरे खत?
पता नहीं कौनसे देश में ब्याह दी थी बेटी...जब भी खत आता..कागज़ भीगा होता..लिखा हुआ सब मिट चुका होता..शीरोमा उसी में घंटों नज़रें गढ़ाए..ना जाने क्या ढूंढा करती थीं...” 

- अंकिता चौहान (आज सिरहाने के लिए)