October 31, 2015

किताब समीक्षा: बात निकलेगी तो फिर: एक गज़लनामा - सत्या सरन

टाइटल: बात निकलेगी तो फिर – एक ग़ज़लनामा  
लेखक: सत्या सरन
अनुवादक: प्रभात रंजन
शैली: संगीत, जीवनी  
पब्लिशर: हार्परकॉलिंस इंडिया
स्त्रोत: निजी कॉपी
पृष्ठ: 160
रेटिंग: 5/5 

जिस आवाज़ को आप अपनी हर नब्ज़ में महसूस करते हों
जिस आवाज़ में छिपा दर्द अपने स्वभाव से परे जा, आपके दिल को सुकून पहुँचाता हो
जिस आवाज़ को सुने बिना आपकी रातें सुबह का सूरज लांघने में हिचकती हों  
जिस आवाज़ को सुनकर ऐसा लगे जैसे बस पहुँच ही गए घर किसी अपने के पास..
मेरे लिए यह आवाज़ जगजीत जी हैं।

एक अरसे बाद जब किताब हाथ में आयी तो आंखे किताब के कवर पेज से उलझ गयीं.. ज़गजीत जी की इतनी तस्वीरें इंटरनेट पर बिखरी रहती हैं फिर भी हर नयी तस्वीर को देखकर लगता है संगीत का अगर चेहरा होता तो तो हू-ब-हू ज़गजीत ज़ी से मिलता.. इतना ही सादा इतना ही संपूर्ण। लबों पर हल्की सी हंसी, चेहरे पर थोडी सी शरारत और आँखे शून्य, आँखें जहाँ हर कोई पनाह पाना चाहता हो, कुछ लम्हें ठहर कर उस आवाज़ को महसूस करना चाहता हो... देखना चाहता हो कि गज़ल गुनगुनाते वक़्त जगजीत जी को दुनिया वैसी ही दिखती होगी जैसी है.. या फिर वो अपने आवाज़ के आयामों में एक नया जहाँ तलाश लेते होंगे जहाँ दर्द भी मीठा लगता हो, किसी बिछड़े हुए रिश्ते की तरह।

यह जीवनी, जगजीत जी की ज़िंदगी के तह-दर-तह सफ़हे खोलती जाती है, जहाँ उस एक आवाज़ से ही नहीं, उस शख्सियत से भी रू-ब-रू होने का मौका मिलता है जिसे संगीत से अलग जानना शायद इतना आसां नहीं होता। जगजीत जी की ज़िंदगी के कुछ पहलुओं को इतना करीब से जानना जहाँ आपको रोमांचित करता है वही दिल में एक कसक रह जाती है की काश थोड़ा और जान पाते.. उनका बचपन, संगीत को लेकर उनका लगाव, जब गज़लें एक श्रोतागण तक ही सीमित थी तब एक परिपाटी से परे जाकर संगीत के क्षेत्र मे अपना ही नहीं गज़लों का भी अलग मुकाम बनाना, अपने लिए गए फैसलों पर, अपने सपने पर विश्वास करना, उस सपने को पूरा करने के लिए संगीत के एक नए युग की शूरूवात करना, माईक के पीछे का संघर्षरत जीवन। जगजीत जी के पारिवारिक जीवन के बारे में जानने का मौका मिलता है जहाँ चित्रा जी से भेंट, कुछ नए रिश्तों से जुड़ाव आदि से संबधित कुछ किस्से है और सफलता के दौर से गुज़रते हुए, अपने सपने के लिए नया आकाश बनाकर... उसपर अपनी आवाज़ से सतरंगी इन्द्रधनुष फेरते जगजीत।

किताब को जगजीत जी की जीवन कथा के अनुसार कई छोटे छोटे पार्टस में बाँटा गया है और बड़ी ही खूबसूरती से उन भागों के शीर्षक स्थापित किए गए। उनके जीवन का हर एक किस्सा उन्हीं की गायी एक गज़ल के साथ शूरू किया गया है, जो कि वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है।

जगजीत जी के जीवन से उठाए गए अंशों का चित्रण इतने सलीके से किया गया है कि यह जीवनी.. आँखों के समक्ष चलती डॉक्यूमेंट्री जैसा महसूस करवाती है, जहाँ जगजीत जी थे, चित्रा जी थीं, और उनके अस्तित्व को पूरा करता उनका परिवार, उनका संगीत।

किताब के अंतिम कुछ पृष्ठ चित्रा जी की वर्तमान ज़िंदगी पर लिखे गये है.. उनके अंतर्मन में ऐसी ना जाने कितनी किताबें होगी कितने ही किस्से होंगे...कितना मुश्किल होता होगा उस आवाज़ को सुनना जो आपसे अलग नहीं थी और फिर एक दिन अचानक उस आवाज़ का बस याद बन जाना। आवाज़ जो पूरी दुनिया की रूह को सूकून पहुंचाती है वो शायद चित्रा जी के दिल में एक दर्द एक टीस पैदा करती होगी।


यह गज़लनामा उस शक्स की ज़िदंगी का क़तरा भर है.. जगजीत जी की हर एक गज़ल में, अल्फाज़ों के बीच उठती गिरती सांसे, ठहराव पाते लफ्ज़ और उस ठहराव पर अपने सुनने वालों की धड़कने बांध लेने वाले जगजीत जी को कुछ सफहों में समेट पाना, चंद लम्हों में बयां कर पाना उतना ही मुश्किल है जितना इश्क का दर्द की लौ से दूरी बनाए रखना।


सत्या सरन जी का बेहद शुक्रिया। आपके इस खूबसूरत प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। 



किताब से कुछ अंश: 

गुलज़ार ने खुलेआम उनकी तारीफ करते हुए कहा था मिर्ज़ा गालिब, जगजीत से परे के जगजीत हैं।



बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

जगजीत जी ने इन आलोचनाओ को अपने ही अंदाज़ मे लिया मेरी आलोचना इसलिए की गई  क्योंकि मैंने गज़लों की धुन बनाने मे कई साज़ो का प्रयोग किया। लोग कहते हैं यह भी कोई गज़ल है इसके जवाब में, मैं उनसे पूछता हूँ आप बताएँ गज़ल कैसी होती है?


अगर आप कहते हैं कि बेग़म अख्तर की शैली गज़ल गायकी की अकेली शैली है तो मैं उसे नही मानता। उनकी शैली उनके महौल को बताती है, लेकिन इसका मतलब यह तो नही हुआ कि ये कोई फॉर्मुला है जिसे दूसरे भी अपनाएँ। उससे पहले बरकत अली की अपने शैली थी। यह मेरी अपनी शैली है, अब देखना यह है कि किस शैली को लोग स्वीकार करते हैं जिसे स्वीकृति मिलती है वही आगे चलकर परम्परा बन जाती है। अलग-अलग शैलियाँ साथ-साथ चलती रह सकती हैं।


मुझको मुझसे अभी जुदा न करो

(अपने बेटे विवेक की असामयिक मृत्यु के बाद..)

दुर्घटना के बाद एक तरह से वह संलग्नता पहले से मजबूत हुई, लेकिन एक तरह से उन्होंने खुद को मुझसे दूर भी कर लिया। पहले की तरह एक-दूसरे से वह रिश्ता नही रह गया। 

पहले कुछ हफ्तो के बाद जगजीत ने अपना तानपुरा उठा लिया। वे घंटों उसे बज़ाते, मानो संगीत की तान उनके दर्द की परतो के पार जा कर उनके दिल को फिर से जगा रही हो

स्मृतियाँ, दर्द और आँसू सब अपनी जगह थे लेकिन उन्होंने उन सबको अपने अन्दर थाम लिया उस ताकत के बल पर जो संगीत ने उनको दी थी।

यह किताब एक बेहद खूबसूरत ज़रिया है उस शख्स की ज़िंदगी के बारे में जानने का जिसकी आवाज़ ने आपकी कई रातों को शायद ज़िंदगी दी हो। 




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Baat Niklegi Toh Phir

October 30, 2015

INVISIBLE STAINS : A Short Story


There, vast sky rejoicing the gold luster of sunbeam but his red-blooded eyes still mourning for the ones, who lost their lives, even his squeaky warning couldn’t save his mates. He would ponder, noticed every inch of green land that engulfed by developed-primates. He would hear the ferocious sounds last night and witnessed, the entire jungle bathed with invisible stains of blood. He would sense the claws of evil on his neck, gnawing teeth of dark shadows, more dangerous than sharp teeth of tiger. And with the poignant scream, the sadness of being homeless echoed in the swollen winds. 

- Ankita Chauhan 

October 24, 2015

Book Review: Mahashweta by Sudha Murthy


Title:  Mahashweta
Author:  Sudha Murthy
Genre:  Literary Fiction
Publisher:  Penguin India
Pages:  160
Rating: 5/5

Two years back I picked the book of Sudha Murthy and title was “How I taught my Grandmother to read” It was kind of anthology. Non- fictional stories author had taken from his own life. There were emotions, simplicity, self-made characters and most important thing hidden messages. I loved the book and fell in love with writings of Sudha Murthy. After months I got chance to read her fictional work “House of Cards” and loved it to the core. The way author weaved the strong story line around characters was outstanding.

Past day I read her most book, titled “Mahashweta” I was curious when I started the book as I knew author not only writes fiction but somewhere she strengthens the personality of readers via her characters. And that what’s the real teachers do. They teach you life’s most important lessons which enveloped into stories, giving us examples how one reacts in particular situaltion. And I’m announcing happily Surdha Murthy Ji is incomparable into that.

If we talk about the basic story line, actually it is a thought provoking novella, in which the protagonist was a girl, named Anupama. Her family was not financially strong but her beauty and her prominent character directed her to world of art, she started doing theatre where she met her hero, Dr. Anand. They got married but somehow Fate played a cruel role and the person her husband who convinced anupama that he would love her the most…come what may, left her in the middle of world. Then story revolved around her struggle how she enabled herself to cope up all this obstacles. At last when her husband comes to her but…. Hey You …Read the novel. Don’t let me spoil the whole story. Highly Recommended!

ABOUT AUTHOR

Sudha Murthy is an Indian author and social worker.

Other books by Sudha Murthy - Grandma's Bag Of Stories, The Bird With Golden Wings : Stories Of Wit And Magic, Gently Falls the Bakula, Dollar Bahu, and The Day I Stopped Drinking Milk: Life Stories from Here and There.

Sudha Murthy was born in 1950 in Karnataka. With a BE in Electrical Engineering and an ME in Computer Science, she was a gold medalist at both the graduate and postgraduate levels. She was the first woman engineer to be employed by TELCO. She married Narayana Murthy, who is one of the founders if the IT company Infosys. Sudha Murthy was one of the initial investors in the company. She is now the Chairperson of the Infosys Foundation. She has been awarded the Padma Shri, and also been given honorary doctorate degrees. 


October 23, 2015

Book Review of Ravindranath Tagore : Short Stories

टाइटल: शिक्षाप्रद कहानियाँ
लेखक: रविन्द्रनाथ टैगोर
प्रकाशक: मनोज पब्लिकेशंस
वितरक: अनु प्रकाशन
संस्करण: 2011
रेटिंग: 5/5

किताब का शीर्षक पढकर मैं थोड़े संशय में थी कि रविन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों में रिश्तों  की बारीकियाँ, मनोभावों का सटीक चित्रण, प्रेमरस में डूबी प्रकृति की अभिव्यक्ति मिलती है। टैगोर जी ने शिक्षाप्रद कहानियाँ भी लिखी हैं..? प्रश्न उत्सुकता भरा था।

किताब खोली गई.. सत्रह बेहतरीन कहानियों का संग्रह है यह किताब, जिसमें चुन-चुन कर टैगोर जी की बेहद खूबसूरत कहानियों को माला में मोतियों की तरह पिरोया गया है। भाषा की सरलता और शब्दों का सही चुनाव पाठकों को अंतिम पृष्ठ तक बांधे रखता है। रविन्द्र जी का लेखन साहित्य जगत के कई आयाम छू चुका है। लेकिन इन कहानियों के अनुवाद  से कभी कभी  कहानी की आत्मा, उसका मुख्य सार लुप्त हो जाता है लेकिन मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी हो रही है कि यह किताब उन सभी मापदंडों पर खरी उतरती है।

सभी कहानियों के पात्र एक लेखक के द्वारा लिखे गए है फिर भी कितने अलग हैं। यह किताब मानवीय भावनाओं का इन्द्रधनुष लगती है।

जहां पोस्टमास्टर में एक बेनाम रिश्ते में आई विरह वेदना है तो वहीं  मुन्ने की वापसी में प्रायश्चित का एक अनोखा रूप दिखता है। मालादान में मज़ाक की हद और रिश्ते पर पड़ते उसके प्रभाव तो दृष्टिदान में पति का अहम और पत्नी  के निस्वार्थ प्रेम को बुना गया है, जिसका अंत मर्मांतक था।

देशभक्त, दुराशा, श्रद्धांजलि, सुभाषिणी, धन का मोह, हेमू आदि कहानियाँ दीपक की रोशनी के नीचे पलते अंधेरे की तरह है जो हमेशा वजूद में होता है लेकिन सबको महसूस नही होता।

अपनी कहानियों के पात्रों का इतना बारिकी से अध्ययन उनको कहानियों में पिरोना और रूपक अंलकार...मेटाफोर्स का इतना अच्छा प्रयोग टैगोर जी के अलावा शायद ही कोई कर पाता है। अवश्य पढ़िए.. अपनी बुकशेल्फ में जगह दीजिए।  

  

An Uneducated Mind : A Short Story

The Sky was black. Smoke of crackers wiped all the plans executed into government buildings.  I was wandering like a hippie—far… far away from my hometown, alone. Suddenly, few street kids caught my attention, playing at the side of that road. I stared for a while, then don’t know why? I rushed towards them and offered few bucks. They hesitated but a shied girl almost snatched the money from my hands.  I was about to turn, leaving the place, but my ears got stuck on their giggles, girl declared while looking at the sky —I’ll buy some plants.

- Ankita Chauhan 

October 21, 2015

Book Review - In the Company of a Poet by Gulzar and Nasreen Munni Kabir


Title:  In the Company of Poet
Author:  Gulzar and Nasreen Munni Kabir
Publisher: Rupa Publications India
Genre: Non-fiction, Biography
Rating: 5/5

I feel blessed sometimes that I’ve been breathing in the era of Gulzar Saab, literally it is hard to imagine the Indian music and poetry world without him. The way he expressed every emotion, the charm he weaved while directing movies, the magic he sprinkled while writing lyrics, speechless is the only word I’m left with.

I have already read “Conversation with Waheeda rahman by Naseen Munni Kabir” and I was in awe how she indulged with the artist while conversing them.. Sometimes It felt like we were in front of the respective person and trying to know their lives.

In the Company of Poet” covers the most of the life events of Gulzar Saab in his own words. NMK doesn’t exaggerate things. She portrayed the person as he/she are. And that’s the beauty of NMK’s books!

This Book reveals the highs and lows of the life of Gulzar Saab, in an expressive manner. As The India-Pak Partition time, when his family had left the Dina(Pakistan) and come to Delhi. How he suffered in initial days... How he fell in love with books, how he started working with Bimal Da, How he got his first song as lyricist and so on… The success story, the relation between many characters related to Classical Indian Cinema.

Believe me! It was fascinating to read about such people whom you have adored that much.  The little things she pointed out in her book making the book Remarkable. The way Gulzar Saab answered each and every question amicably …I couldn’t help it but fell in love with his basic nature. The humbleness!

The poetry love of Meena kumari, The Kind nature of Bimal Da, The discipline of Hrishikesh Mukherjee, his tennis friends and of course he talked about his poetry…!

The parts I loved most:

What's his father thought - He was sure that things just happened in one’s life and there was no grand plan or element of choice.

His career and Work - Despite his long and prolific career, a career that continues to win him countless awards and widespread recognition, he wears his success lightly. He has his finger on the pulse and feet firmly on the ground. He is a man who remains intensely curious about the world around him and so has a great capacity for reinvention. Gulzar Saab’s work shows the embracing of change, and a constant search for new idioms and ideas. That is probably the reason why, for over five decades, his poetry, songs and films have appealed to people across generations.

His love for poetry - A sunset in a poem has always been more real to me than a sunset in a film. Personally, I like direct communication and thus writing poetry is still my preferred choice.
When Nasreen Ji asked him about Shair!  
NMK: I was interested to discover the Persian word ‘shair’ comes from ‘shou-our’ which means wisdom.
G: ‘Shou-our’ in Urdu is also used for consciousness.

When Nasreen Ji asked him about writing.
I don’t think you can pinpoint the moment when you turn into a writer. Writing is a process and you do not know where it starts or ends. You write something, put it aside, come back to it, go away from it, and finally the writing gains some maturity.

While taking about his father - The human tragedy unfolding around him was a far greater shock—a greater blow to him than the loss of material possessions.

He shared Tagore’s poem with his translation -
G: ‘Your questioning eyes’ from the collection The Gardener. This is Tagore’s English version:
Your questioning eyes are sad
They seek to know my meaning
As the moon would fathom the sea…
My hindustani translation:
Samajh paati nahin ho tum mujhe,
hai naTa’ajjub se bhari aankhein tumhari poochhti hain
Ki jaise chaand ek-tak dekhta hai ta’ajjub se samandar ko

While conversing about Ghalib’s Work -
I also wrote a poem inspired by a line of Mus’hafi—‘Tere kooche is baahaane humein din se raat karna, kabhi is se baat karna, kabhi us se baat karna.’ 

He shared moments of Kishore Da –
Ashaji always said it was difficult singing a duet with him because he would make her laugh in the middle of the recording. at that time songs were recorded with a full orchestra and as soon as the interlude music would start, Kishoreda would walk over to the musicians and tease the violinist or drummer while they were trying to play. But he would come back to the mike precisely when he knew he had to catch the beat. He was fantastic.

I wish I could share more dimensions of his life here. Book is such a beauty. Must Savour!


About The Author: 
Nasreen Munni Kabir is a reputed documentary film-maker and film writer. Based in London, she has made several programmes on Hindi cinema for Channel 4 TV, UK, including the forty-six part series Movie Mahal and The Inner/Outer World of Shah Rukh Khan. Her several books are, among others, Guru Dutt: A Life in Cinema, Talking Films and Talking Songs with Javed Akhtar, A.R. Rahman: The Spirit of Music, Lata Mangeshkar: In Her Own Voice and In the Company of a Poet, a book of conversation with Gulzar. 

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October 20, 2015

वरदान - प्रेमचन्द ( हिन्दी साहित्य)

टाइटल: वरदान
लेखक: प्रेमचन्द
पब्लिशर: मनीत प्रकाशन
रेटिंग: 4/5

गाँवो से आती माटी की सौंधी-सौधी खूशबू,  ग्रामीण अंचल के मध्य खिलते किरदार, उन किरदारों के मन की व्यथा तो कभी रिश्तों में जन्मी प्रगाड़ता... अगर इन सब मनभावों को करीब से महसूस करना है तो प्रेमचन्द जी का साहित्य पढ़िए। कभी कभी लगता है अगर प्रेमचन्द जी जिनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव है अगर कलम ना उठाते तो इस मशीनी युग के शोर में वो नीम के पेड़ के नीचे उपजा एक युग खो जाता। एक अरसे बाद भी प्रेमचन्द जी  के लेखन को उतना ही पंसद किया जा रहा है।

अब तक इनके क्लेक्शन से गोदान गबन निर्मला, मानसरोवर खंड, प्रतिज्ञा, कर्मभूमि, मनोरमा, कायाकल्प...पढ चुकी हूँ...और प्रेमचन्द जी की हर किताब दिल से पंसद भी की गई। गत दिनों वरदान पढ़ने का मौका मिला..जिसके किरदार इनती खूबसूरती से गढ़े गये हैं कि आप किताब के अंतिम पृष्ठ पर कब पहुंच जाते है पता ही नही चलता। साहित्य की एक शति जिनके नाम है उनके पात्रों द्वारा एक तरह से आप अपनी संस्कृति का अध्ययन करते हैं।

वरदान ऐसे  दो पात्रों की कहानी है जिनका बचपन साथ बितता है...साथ खेलना, रूठना मनाना, अपने मन में एक दूसरे की छवि एक रिश्ते की तरह बिठाना। ये स्वप्न मंदिर तब टूटता है जब विरजन की शादी अपने बचपन के साथी प्रताप से ना होकर एक कुलपति कमला, से हो जाती है। 
Loved this part 
विरजन का किरदार मुझे मुख्य लगा ..जैसा कि प्रेमचन्द जी की कई कहानियों में देखने को मिलता है। वो बेहद आसानी से स्त्री की मनोदशा को, मनोभावों को व्यक्त कर देते हैं। यहां भी विरजन पूरे कहानी के दौरान अपने कर्तव्य और मन में छुपे प्रेम के प्रति सांमजस्य बैठाती रही। अंत में विरजन विधवा हो जाती है और प्रताप जगत में प्रसिद्धि पाकर एक योगी बन जाता है जैसा कि उसकी माँ सुवामा उसके जन्म उपरांत वरदान मांगती है पर अंत में वही वरदान किताब का मुख्य सार है।  

यहाँ ये कहना आवश्यक है अगर अंत को थोड़ा स्प्रिचुअल मोड़ ना दिया होता तो किताब और ज्यादा रोचक हो जाती। मुझे ये किताब देवदास और गाईड का मिक्सचर लगी। अवश्य पढ़िए।  

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October 19, 2015

हमेशा देर कर देता हूँ मैं - मुनीर नियाज़ी

हमेशा देर कर देता हूँ मैं..

जरूरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं ..

मदद करनी हो उसकी
यार की ढ़ारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं..

बदलते मौसमों की सैर में
दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो
किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं ..

क़िसी को मौत से पहले
किसी ग़म से बचाना हो
हकीकत और थी कुछ
उसको जाके ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं ..

- मुनीर नियाज़ी

(Voiced by Me)

Book Review : Vaishnavi by Rabindranath Tagore

टाइटल: वैष्णवी
लेखक: रबिन्द्रनाथ टैगोर
अनुवादक: माधवानन्द सारस्वत
पब्लिशर: विवेक पब्लिशिंग हाउस
रेटिंग: 3/5


रबिन्द्रनाथ टैगोर जी की कहानियों की अपनी एक दुनिया है एक अलग मुकाम। टैगोर जी की कहानियों को किसी कालखंड में नहीं समेटा जा सकता... जिस तरह वो हर एक अहसास को अपने कहानियों के किरदारों में दिखाते है..हर एक भाव को व्यक्त करते है, अतुल्नीय है। लेकिन कभी कभी जब आप भाषा की अनभिज्ञता के कारण किसी किताब का अनुवाद पढ़ते तो लेखक की कलम का वास्तविक तत्व कहीं खो जाता है। इस किताब की कुछ कहानियों ने भी वही प्रहार झेला होगा शायद। हांलाकि थीम काफी अच्छा था। लेकिन अनुवादक टैगोर जी के पात्रों के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाए। कहनियों में हिन्दी के कठिन शब्दों को जबरदस्ती डाला गया हैं जिससे पाठक अपनी लय खो देता है। किताब पढ़ते वक्त एक तरह की बोरियत महसूस होती है। ऐसा किताब की सभी कहानियों के साथ नहीं है बारह कहाँनियों में से वैष्णवी, डालिया, कंकाल, छुट्टी, सुभा, महामाया, मध्यवर्तिनी, मान-भज़ंन में जहां आप साहित्य के नए आयामों से मानव हृदय की संवेदनाओं से परिचित होते हैं वहीं...विचारक, बला, दीदी जैसी अन्य कहानियाँ मुझे सिर्फ शब्दकोश से उठाए गए कठिन शब्दों का संग्रह लगी। इनका अंग्रज़ी अनुवाद शायद ज्यादा अच्छे से लिखा गया हो। अगर लाइब्रेरी में यह किताब मिले तो एक बार पढी जा सकती है। 

October 18, 2015

TANDAVA : A Short Story

‘You won’t dance. That’s it.’ 
He left the room after putting his stamp of word onto her fate.  
Something somewhere creaked, 
a sudden force fall off, 
as if someone hammered her heart into thousand pieces.  
Her feet started wavering, 
eyes palpitating as her existence into middle of nowhere. 
The energy she had been restricted to herself since ages, 
connected with an imaginary source. 
A quick move and 
she danced… she danced like refusing every direction, 
every measure, world prompt to her.  
The wordless expression was enough to reveal 
that beneath her flesh 
there was frolic soul of flamingo. 


- Ankita Chauhan 

October 14, 2015

The Place I Often Missed Is Your Lap

October is the month, I had lost you. And when I saw this “MakeYourMotherSmile” campaign running on the occasion of Kalam Sir’s Birthday, I was wondering how could I do this when you’re not even around me anymore? I can sense your touch though, but scent of your presence, warmth of your breath, reminiscence of your lap… How could I bring back all those memories, just in few words?

I was not an easy child. I literally don’t know how did you manage all chores especially my tantrums? And then I learnt no one can understand your silence except your mother, genuinely you were silence-reader, were? You still are…whenever I get upset, the moments I spent with you, make me smile and I forget for a while, that you are not with me anymore.  You are the one who made me believe that we make mistakes, we try, we can’t be perfect, and that’s how we live.

When I was in hospital, that while liquid continuously flowing in my left arm—drop by drop. Doctor advised you to caress my arm, the six nights you didn’t even care to blink.  How could you love me so selflessly? You taught me how to feel pain of someone else, when your 6-years-old student broke her hand— I caught an intense pain in your eyes as well. That’s the definition of Mother.

Although I have been trying to survive without you, but my fingers still yearn for your palm, memorizing your words ‘Simplicity what makes us unique!’
I owe you my life…Maa!


Book Review: SLEEPING ON JUPITER by ANURADHA ROY

Source
Title: Sleeping on Jupiter
Author: Anuradha Roy
Publisher: Hachette India
Genre:  Literary Fiction
Pages:  256
Rating:  5/5

The train was just a parcel of people rushing through a landscape they had no connection to.

First thing that attracted me towards the book was The Title “Sleeping on Jupiter” and when it got selected in Booker Prize 2015 Longlist. I found the right reason why should I read it? I hope more readers who love to read sensible literature would have picked Anuradha Roy’s latest work already.

She was a feather on the wings of the kite in that borderless sky.

From the start, story engulfed all my senses at one go. The way Author described every scene was beyond the words… I stopped reading after few pages and explored her name on Google, as I have not read her stuff before and totally astonished by just few pages, on that place author wins, I believe.

Don't you feel like disappearing from your life sometimes?

If we talk about a basic story line, a seven year old girl, named Nomi, witnessed her father’s brutal death and lost her whole family at once. Somehow he placed into an Ashram where she suffered a lot in presence of a sinister Guruji. Roy weaved the parallel characters so well, the three women who were vacationing and clashed with the Girl, Nomi. You might be finding hard to get into his book at first but It took me four days to finish it, meanwhile I feel no shame to confess that I read and reread many sections. Now you can imagine the quality of the literature, actually I wanted to savour every word every emotion steadily. 

I found variations in a single book, Author raises her point about faith, child abuse and homosexuality. Sometimes the poignant tale gave me Goosebumps enveloped with many questions, would  ever be the second gender feel safe in this world and somewhere the boldness of characters, the language of the book enthralled me.  I would say in bold letters, I Read a spellbound book after long time, maybe last was “The House in Smyrna by Tatiana Salem Levy” 

About the Author
Anuradha Roy won the Economist Crossword Prize for Fiction for her novel The Folded Earth, which was nominated for several other prizes including The Man Asia, The D. S. C. and The Hindu Literary Award. Her first novel, An Atlas of Impossible Longing, has been widely translated and was named by World Literature Today as one of the sixty essential books on modern India. She lives in Ranikhet.

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October 09, 2015

I often Visit : A Poem

There is a place I often visit.
A place surrounded by empty stairs,
Filled with drops of reminiscence,
Just like that shimmering nose pin on her face. 
I felt a sharp pain
Whenever I sensed her touch,
Her glance… her curves.
The fragments of her voice
Floating on the turquoise surface of water,
Making me yearned for her,
While she is too far to return.
The comfort
I found around this oasis,
She might have instilled herself.
Perhaps she already knew conspiracy of
Our  fate, the dice game of death.
The place echoed with her glimpses, I often visit.

- Ankita Chauhan 

October 07, 2015

Book Review: On Writing by Charles Bukowski


Title: On Writing 
Author: Charles Bukowski
Editor: Abel Debritto
Publisher: Canongate Books
Genre: Non-Fiction, Writing
Pages: 224
Source: Personal Copy

 “My writing is jagged and harsh, I want it to remain that way, I don’t want it smoothed out.”

A writer’s life is all about books. Everyone knows how to write but very few of them know how to persist.  Are you strong enough to face the rejections, loads of rejections?  It’s quite unbelievable that this is my first read of  Bukowski, when there was a tag in the book “Don’t pick the book, if you have not read bukowski yet.”  I couldn’t resist that much curiosity and I took it immediately.  Boom!

When I read the title of the book, I thought it would teach me the art of writing, but believe me except few pages, you won’t find those teachings. Basically book is about the correspondence letters shared between Bukowski and his publishers, editors and friends. Sometimes I got amused how could they publish this, this is someone’s private life, his struggles, his mood swings, Yet … To know someone personally is quite interesting especially when he is an author. Usually authors don’t allow their readers to peer into their lives. So it was kind of an adventure.

“more poems enclosed. I’m trying to build a stockpile and I will blow the world up with my poems. yeh.”
“I think sometimes we can become too holy and therefore, caged.”
“You’ve got right to criticize me and much of it is probably correct, but one thing you’re going to learn, finally, I feel is that creation is not photography or even necessarily standard truth. Creation carries its own truth or lie.”

Bukowski’s life builds on rejections, millions of failure before he actually got success in respective field. It was interesting to glance on his rejection slips. Can you believe it he got rejection letter from Hustler that revealed, “The subject matter is just too strong for us to handle, Specifically, it’s the beastiality and also its violent result.”

“Writing is a damn funny game. Rejection helps because it makes you write better; acceptance helps because it keeps you writing." 

When I started the book, literally I was going to drop it but when the pages move forward, It was getting better and I began to enjoy it to the core. There were some doodles which made me laugh, some insightful moments of an author’s life as well. 

Book consists of his unpublished letter written between 1959 to 1983, So don’t expect much, things were repetitive still seemed refreshing.  

[To John Martin]

March 23, 1991, 11:36 PM
I keep getting this feeling that I am a beginning writer. The old excitement and wonder are there . . . It’s a great madness. I think too many writers, after they have been in the game for some time, get too practiced, too careful. They are afraid to make mistakes. You roll the dice, you’re going to get snake eyes, sometimes. I like to keep it loose and wild. A good tight poem can happen but it comes along while you are working with something else. I know I write some crap but by letting it go, banging the drums, there’s a juicy freedom in that.
I’m having myself a rife, ripe, rapacious, ripping time. So far, the gods are allowing me this celebration. It’s so strange. But I’ll take it.

If you could stay away narrow-minded neurons for a while, then Must Read This Book. 


 About The Author 



Henry Charles Bukowski (born asHeinrich Karl Bukowski) was a German-born American poet, novelist and short story writer. His writing was influenced by the social, cultural and economic ambience of his home city of Los Angeles.It is marked by an emphasis on the ordinary lives of poor Americans, the act of writing, alcohol, relationships with women and the drudgery of work. Bukowski wrote thousands of poems, hundreds of short stories and six novels, eventually publishing over sixty books.
Charles Bukowski was one of our most iconoclastic, raw and riveting writers, one whose stories, poems and novels have left an enduring mark on our culture. On Writing collects Bukowski's reflections and ruminations on the craft he dedicated his life to.