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“ पर मैंने तो तुम्हें,
तुम्हारे कहे हर
शब्द को
अक्षरशः सच मानकर
जिया था,
क्या वो सब बेमानी
था ? “
“ कहने के लिए मेरे
पास
कुछ है नहीं और
सुनना इतना ही
ज़रूरी है तो सुनो
मुझे प्यार नहीं है
तुमसे..! “
उसकी आंखों में,
एक चुभता हुआ इंतज़ार
छोड़
अपनी राह लौट आया
मैं..
जैसे-जैसे मैं
मकान की सीढ़ीयाँ चढ़
रहा था,
कुछ पिघल रहा था
सीने में..
जो दिल बर्फ हो चुका
था उसके सामने
आंखों का रास्ता
इख्तियार कर बहने लगा ।
सांसों ने जैसे मना
कर दिया हो
मेरे साथ आने से,
रह् गयीं हो उसी के
पास..
अपने ही हाथों खुद
को कत्ल कर आया था आज,
ज़रूरी था !
कैसे समेट पाता
सम्पूर्ण ज़ीवन को चंद पलों में,
चंद पलों में ही तो
गुज़र जाते है ना छः
हफ्ते !
तीन दिनों से गूंजते
डॉक्टर के शब्द अब ठहर गए..
खुद को हार आया मैं
आज,
जो जीत चुका है, वो
है...
मेरा रिश्ता,
इस ज़िंदगी को
समर्पित
. . मेरा अंतिम
अभिनय !!
- अंकिता चौहान