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तितली से परों-सी
नज़ाकत लिये
तुम्हारे अल्फाज़ जब
भी
मेरे ख्वाबों की
मुंडेरों पर
दस्तक देते हैं,
समेट लेती हूं
कुछ आधे अधूरे संवाद,
कुछ वक़्त की धुंध
में
बिसरी झलकियाँ,
कुछ तुम्हारी आवाज़
में
गूंजते नगमें,
कभी एक आलिंगन ...
फिर सुबह-सुबह स्याह
पलकों पर
जब बिछने लगती है,
धूप की इक सुनहरी
चादर
. . .मेरी मुठ्ठी बंद
मिलती है अक्सर !!
- अंकिता चौहान