February 21, 2014

परिचय

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पहली बारिश में भीगी मिट्टी से
उठती सौंधी खुशबू ...
तो कभी, हथेली पर बेफिक्र महकती हिना मैं ॥

ख़ामोश तस्वीर के बोलते रंग ...
तो कभी, नज़्म बन कागज़ पर बहता एक लहज़ा मैं ॥

यादों का अब्र बन सांसों में सिमटती इक साँझ ...
तो कभी, चाँद के नूर को मुकम्मल करती इक शब मैं ॥

सब्र को उम्मीदों में बदलता एक संवाद ...
तो कभी, झूठ को उम्र भर जीता एक सत्य मैं ॥

एक मुस्कुराहट माँ के होंठो की ...
तो कभी, बाबा के माथे की सिलवटों में
छिपी एक फिक्र मैं ॥

वसंत में गूंजती कान्हा की बंसी ...
तो कभी, पतझड़ में राधा के नैनों से
बहता इंतज़ार मैं ॥

तेरे थिरकते लबों पर अठखेलियाँ करती
एक मीठी सी चुप ...
तो कभी, तेरे अंतर्मन के साथ आँख-मिचोली खेलती
निस्वार्थ प्रेम की ज़ुबान मैं ॥

- अंकिता चौहान