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पुराने साल का
कैलेंडर निकाल
नये के पीछे टांग
लिया,
इस तरह उलझी ज़िन्दगी
से
थोड़ा और वक़्त उधार लिया
।
नये कैलेंडर में
फिर समा गए
प्यार भरा आगाज़ तकते
कई टूटे बिखरे रिशते,
कुछ जलमग्न नैन
पंखुड़ियाँ
और कुछ गिले शिकवे ।
नये कैलेंडर में
जड़ दी गयीं फिर कुछ
तारीखें
इसका जन्मदिन उसकी
सालगिरह,
डॉक्टर अपॉइटंमेंट
एक कोर्ट ज़िरह |
नये कैलेंडर में
छेड़े गए फिर छुट्टियों
भरे सुरीले तार
होली दिपावली जैसे,
निरंतर अपना महत्व
खोते
कई खुशरंग त्योहार ।
तभी कुछ तारीखें
यादों के दायरे तोड़ झलक
पड़ी आंखों से
और चढ़ा गई लबों
पर...
खामोशी भरी मखमली
शॉल ।
वो इक
भीगा हुआ दिन तुझ
संग मसरुफियत का,
वो इक
भीगी हुइ शाम तुझसे
अज़नबियत की !!
- Ankita Chauhan