बचपन में अपनी स्कूल की किताबों से अलग एक
लाइब्रेरी बनाई थी, करीब सौ किताबें कहानियों की, कॉमिक्स से लेकर भारतीय सुपरहीयोज यानी कृष्ण
हनुमान महाभारत बाल रामायण हातिम ताई अकबर बीरबल, प्रेमचंद
के गोदान गबन तक। जब पढ़ने बाहर गई तो वो लाइब्रेरी गायब हो गई शायद वो बचपन की
किताबें उन बच्चों के हिस्से आयीं जिन्हें उनकी ज्यादा जरूरत थी, गोदान के अलावा मम्मी ने सब किताबें बांट दी।
इतना गुस्सा आया था मुझे उस वक्त। इतने सारे दिन चुप रही थी। नाइंथ में मैथ्स को
अपना दोस्त बना लिया था। उसमे सर खपाना वक्त को खत्म करने का सबसे आसान जरिया लगा।
लेह्निजर और जोऑलजी को अलविदा कहकर कुछ साल पहले किताबों की अपनी उसी दुनिया में
लौटना एक मजबूरी थी, धीरे धीरे फिर से पढ़ रही हूँ, छोटू सी लाइब्रेरी बनाने की कोशिश कर रही हूँ।
ज्यादातर किताबें किंडल में ही हैं। लगता है अपने पीछे जितनी कम फिजिकल प्रेजेंस
छोड़कर जाओ उतना अच्छा रहेगा। खुश हूँ, आउटफिट्स को
उँगलियों पर काउंट कर सकती हूँ, जरा से हैं।
एक्सेसरीज के बारे में सोचने पर भी कुछ ध्यान नहीं आता, किताबें हैं जिन्हें लंबा खाली वक्त मिलते ही
डिजिटल शीट में डालना है,
कैटलॉग टाईप कुछ।