टाईटल: तुम प्रतीक्षा करना
लेखक: गोपाल नारायण आवटे
प्रकाशन: सक्षम प्रकाशन
शैली: कविता-संग्रह
स्त्रोत: लाईब्रेरी
पृष्ठ: 72
रेटिग: 1/5
आम जन का मानना है कविताएँ लिखना बेहद सरल
है, कोई भी इंसान अगर कलम चलाना जानता है तो मान लीजिए वो अपने भावोंं को शब्दों में
पिरोकर लिख दे और कविता बन जाती है। मेरा मानना है कविता अगर दिल से निकल रही है तो जरूर लिखिए, अपने आप को घोटिए मत, लेकिन उस अध-पके भावोंं को जब आपका मन
प्रकाशित करने के लिए तड़पे तो एक बार लाईब्रेरी से दो चार कविता संग्रह या रविवार
के रंगीन पृष्ठ पर छपी वो एक आध कविता पढ लें, देख लें कविताओं का स्तर। कुछ भी लिखेंं लेकिन जब आप उस कुछ भी को किताब के रूप में छपने भेजते हैं तो आपको दूसरे के समय का थोड़ा
ध्यान रखना चाहिए। ज़िंदगी छोटी सी है।
ये जरा सा गुस्सा था, उन कवियों के उपर जो
हिन्दी में कुछ भी लिखकर अपने स्तर के साथ साथ हिन्दी के स्तर की नैया को डगमगा
रहें हैं। हालाकि यह किताब पढने का मन इसलिए भी हुआ कि ये कविताएँ थी, और इससे
पहले मैं आवटे जी का लेखन “हाँ मै नक्सलाईट हूँ” पढ़ चुकी हूँ। वो किताब अच्छी थी लेकिन
माफ कीजिएगा, इस किताब ने निराश किया, कविताएँ रस-विहीन लगीं।
पूरी किताब में बस यही पंक्तियाँ थी जो
यहाँ साझा करने योग्य हैं।