March 05, 2016

वक्त के साथ-साथ..

रोज़ सुनता हूँ
राह चलते मुसाफिरों से
वक़्त बदल गया है..
लोग बदल गए है

कभी कभी उनपर यकीन हो आता है
कहीं मैं भी तो नहीं बदल गया... 

लेकिन कुछ लम्हें, बार-बार मन की मुंडेर पर दस्तक देते हैं
लम्हें जिनमें कुछ यारियाँ बसी हैं
कुछ बचपन बसा है
कहीं हंसी खनकती है
तो कहीं यारों की बातें..

एक अरसे बाद उनका मिलना 
यकीन दिला देता है,
कि इस ‘बदले हुए कुछ’ को भी 
बेहद खूबसूरती से जी लेगें,
अगर यारियाँ साथ हो..


- अंकिता चौहान