काले घर में सूरज रख के,
तुमने शायद सोचा था, मेरे सब
मोहरे पिट जायेंगे,
मैंने एक चिराग़ जला कर,
अपना रस्ता खोल लिया.
तुमने शायद सोचा था, मेरे सब
मोहरे पिट जायेंगे,
मैंने एक चिराग़ जला कर,
अपना रस्ता खोल लिया.
तुमने एक समन्दर हाथ
में ले कर,
मुझ
पर ठेल दिया।
मैंने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख
दी,
काल चला तुमने और मेरी जानिब
पर ठेल दिया।
मैंने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख
दी,
काल चला तुमने और मेरी जानिब
देखा,
मैंने काल को तोड़ क़े
लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया.
मैंने काल को तोड़ क़े
लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया.
मेरी ख़ुदी को तुमने
चन्द
चमत्कारों से मारना चाहा,
मेरे इक प्यादे ने तेरे चाँद का
मोहरा मार लिया
चमत्कारों से मारना चाहा,
मेरे इक प्यादे ने तेरे चाँद का
मोहरा मार लिया
मौत की शह दे कर
तुमने समझा
अब तो मात हुई,
मैंने जिस्म का ख़ोल उतार क़े
सौंप दिया,
और रूह बचा ली,
अब तो मात हुई,
मैंने जिस्म का ख़ोल उतार क़े
सौंप दिया,
और रूह बचा ली,
पूरे-का-पूरा आकाश
घुमा कर अब
तुम देखो बाजी,
पूरे-का-पूरा आकाश घुमा कर अब
तुम देखो बाजी..
तुम देखो बाजी..
- गुलज़ार साब
P.s - Tried to recite his Nazm. Found it Inspirational and heartwarming.(ग़ुस्ताखी माफ)
