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लौट कर आना तेरा
मुमकिन नहीं अगर
इन वादों की रसीदें
तू साथ लेता जा..
ये निगाह-ए-तन्हाई औ’
खामोशियों के सुर
रूठा हुआ दिल-ए-साज़ भी
तू साथ लेता जा..
आँखों में ठहरी नमी
हथेली पर आ ज़मी
लकीरों में उगते उफ़ूक भी
तू साथ लेता जा..
माना के तेरे चर्चे
तेरी शोहरत सर-ए-जहां
गुजरी तेरे बगैर
ये मेरी ज़िदगी निहां..
सांसों में आ उलझा है
इक आखिरी अरमां
बेमाने इस वज़ूद से
निज़ात देता जा..
लौट कर आना तेरा
मुमकिन नहीं अगर
इन वादों की रसीदें
तू साथ लेता जा..
तू साथ लेता जा..
- Ankita Chauhan