यूँ तो अमृता प्रीतम जी की हर किताब कुदरत की रूह-सी होती है उसको पढ़ना एक नई
दुनिया की सैर करने जैसा है, जहाँ
अहसास चेहरा लगाये घूमते हैं।
अमृता जी ने अपनी इस किताब “सात सवाल” में
अलग-अलग क्षेत्रों के कलाकार, विद्वान
चुने हैं और उन्हे अपनी कला अपनी यात्रा के बारे में बताने का पूरा अधिकार भी दिया
है। इस किताब में रखे गये विचार आपके चिंतन के दायरे को विस्तार देते हैं।
खुशवंत सिंह, अनीस जंग, राज गिल, इमरोज़ चित्रकार, कृष्ण अशांत, अमर भारती, घूसवां साइमी जैसे कलाकारों
से अमृता जी द्वारा सात सवाल किये गए, जिसमें साँतवा सवाल आजाद था जो उस शख्सियत के स्वयं के ज़हन से था।
जब आप साक्षात्कार संबधी किताबें पढ़ते हैं तो आप उनकी ज़िन्दगी की उस
तह से रू-ब-रू होते हैं जहां उनकी कला ने जन्म लिया होगा, उनके अस्तित्व का उद्गम
स्थल।
इसी किताब में इमरोज़ कहते हैं
“ज़िन्दगी पानी है और कला उसकी रवानी उसका प्रवाह। कुछ चित्र वक्त के
दस्तावेज़ नहीं बनते।"
वहीं मसऊद मुनव्वर फरमाते हैं –
रोशनी भर याद की खुशबू जला रखता हूँ मैं,
फ़ासलों के ख्वाब फरदों पर उठा रखता हूँ मैं।
इसके अतिरिक्त एक मीठा सा सच भी पढ़ा मैंने इस किताब में..
” तहज़ीब का
धर्म से कोइ वास्ता नहीं, सिर्फ
इंसानियत से होता है।“
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