Photo courtesy : Vivek Arya |
सच !
कितना मुश्किल है
अधूरे किस्से को
पूरा करना
किस्सा, जिसके फूल
जैसे किरदार
एक साथ बैठकर गढ़े थे,
कभी हमनें
समय की धूप में
आँचल रहता तुम्हारा,
मेरे अस्तित्व पर
बारिशों में
मैं अपना रैन-कोट
तो कभी अपनी मोहब्बत,
ओढ़ा दिया करता
तुम्हें...
अपने कांपते हाथों
में
उस नन्ही सी
मुस्कान को लिए
जब तुम पहली बार घर आई
तुम्हारी आँखों से
बरसती खुशी
एक अरसे तक
भिगोती रही मेरा
कॉलर
खमोश पल, फिर भी कितना
सुखद !
कॉलर तो आज भी
भीग जाया करता है, तुम्हारी
यादों में
लेकिन मुझे दिया हुआ
तुम्हारा मासूम
तोहफा
वही नन्ही सी
ज़िन्दगी, हथेली रख देती है
मेरे गालों पर,
निर्जीव क्षणों में
उत्सव भर
हमारी नन्ही परी
जीवित रखे हुए है
मुझे...
उसके साथ..
एक नए अहसास,
एक नए पात्र को जी
रहा हूँ
सुनो ! खुश खबरी है,
धीरे-धीरे
मैं एक माँ हो रहा
हूँ !
- अंकिता चौहान