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गुज़रते इस वक़्त के
खामोश साहिल पर,
साया तुम्हारी यादों
का
अब शोर करता है..
होती जो मैं हवा,
तेरी सांसों में
पनाह पाती,
धनक-भर हसरतों-सी
मीठी फ़ुहार बन जाती..
राज़दां ग़र होते जो तुम
इक हयात मुमकिन थी,
तेरे मेरे दरमियां
इश्क-ए-कायनात मुमकिन
थी..
दहलीज़ पर सिमटें हैं
कई ख्वाब क्या कहना,
ज़वाब में मिलते रहे
सवाल क्या कहना..
ज़ज्बा तुम्हारे
वादों का
अब शोर करता है,
गुज़रते इस वक़्त के
खामोश साहिल पर,
साया तुम्हारी यादों
का
अब शोर करता है..!
- अंकिता
चौहान