जब भी हम भविष्य की ओर कदम बढ़ाते हैं तो अतीत पीछे छूटता जाता है, यह गलतफहमी है हमारी । वरन
हमारा अतीत और उससे जुड़े पात्र हमारे वर्तमान की परछाई बन साथ साथ चलते हैं, हमारा मार्गदर्शन करते हैं ।
गत दिनों “ राष्ट्रबन्धु
“ जी की
किताब “ प्रेरक
प्रसंग “ पढ़ने का
अवसर मिला । साधारण सी दिखने वाली ये किताब अपने राष्ट्र के लिए जीने वालों का
आकलन बहुत ही सरलता से करती है । कई दिग्गज़ों के जीवन-वृतांत से लिए गये कुछ
महत्व्पूर्ण प्रसंग इस किताब में बांधे गये हैं
जो मुझे भारतीय होने पर गर्व करने क एक और सबब देते हैं !!
रामानंद चटर्जी – इन्होनें अंग्रेजी माध्यम
की ब्रेल लिपि को बदलकर बँगला भाषा के उभरे अक्षर तैयार कराए और दृष्टिहीन
व्यक्तियों की पढ़ाई के लिए उपकरण जुटाए । बड़े बाबू (प्रख्यात नाम) ने कई जगह पर
प्रेस और कार्यालय स्तापित किए,
ये पुस्तक प्रकाशक भी थे । दासी, प्रवासी, प्रदीप और्
मोर्डन रिव्यु (अंग्रेज़ी) जैसी कई पत्रिकाओं का संपादन किया । “ स्लाटर ऑफ द इन्नोसेंट्स “ लेख लिखकर छात्राओं को
अवांछित परिक्षाओं से छुटकारा दिलाया । रविन्द्रनाथ टैगोर के साहित्य को विश्व
स्तर पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था ।
प्रेमचन्द्र – देश की
स्वतंत्रता के लिए प्रेमचन्द्र जी ने लिए लेखन किया । इन्होंने अपनी कहानियों और
उपन्यासों में किसानों और मजदूरों की परिस्थितियों और समस्याओं का चित्रण किया ।
गांधीजी के “सविनय
अवज्ञा आंदोलन” को
स्वीकार किया । प्रेमचन्द्र जी उर्दू पत्र “आवाज़े खल्क” में ‘नवाबराय’ नाम से लिखा व ‘सोज़ेवतन’ में पाँच कहानियाँ लिखी, जिनमें स्वतत्रता का आवाहन
था । इन आग्नेय कहानियों का प्रभाव इतना था कि “धनपतराय” लेखकीय
नाम “प्रेमचन्द्र” को अपनी
सरकारी नौकरी (डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ
स्कूल) भी छोड़नी पड़ी ।
इसके अतिरिक्त..
निराला जिनकी
कविताओं को कुछ शास्त्रियों ने ‘रबड़ छंद’ कहके उपहास उड़ाया ।
“जूही की
कली”, “वह तोड़ती
पत्थर” जैसी कई
श्रेष्ठ रचनाऐं लिखीं ।
मीराबाई जिनके
पदों ने संगीत प्रधानता को वरीयता दी । इनमें घोर निराशा से आशा के आयाम मिलते हैं
।
जगदीश चन्द्र बसु (जीवधारियों
व वनस्पतियों में साम्य) , डॉ. होमी
जहाँगीर भाभा (कॉस्केड
सिद्धांत) , डॉ.
गोविंद खुराना (
इन्होनें औषधि और शरीर-क्रिया विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देकर नोबल पुरस्कार
1962 प्राप्त किया ) , लोक
प्रसिद्ध राट्रपति डॉ, राजेन्द्र
प्रसाद , उधम सिंह (
जिन्होंने जलियाँवाला बाग नरसंहार का बदला जनरल डायर पर गोलियाँ चलाकर लिया ) व तुलसीदास जैसे
विद्वानों से सम्बन्धित प्रेरणादायक किस्से दिये गए हैं ।