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लम्हों की
नज़ाकत को समझो,
लफ़्ज़ों को
हिमाकत करने दो...
छुप-छुप के
चखा करती है मुझे,
उन
पलकों को शरारत करने दो...
शब पड़े
जो ज़ुल्फों की
गिरहों से उलझते हैं,
वो हमज़बां
सहर होते ही
लहज़े बदलते हैं...
तुम
इक उम्र तक
मुझ में
ठहर कर ज़ानिब,
इस रिश्ते की हिफाज़त करने
दो,
एक ख्वाब, हकीकत
करने दो ..!!
- अंकिता चौहान