सृजन
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ये रस्म-रिवाज़ो की
बंदिशें,
ये जाति-धर्मों की
रंजिशें,
इन बेमानी
साज़िशों से परे,
दूर कहीं
आंकी-बाकी गलियों
में,
किसी मकां की
खिड़की
पर पनपता
उतावला-सा
इश्क़
इठला रहा होगा...
समाज की
बोझिल
जंजीरें तोड़,
इशारों ही इशारों
में
एक नया रिश्ता
सृजन
पा रहा होगा…!!
- अंकिता चौहान