April 10, 2014

सृजन

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ये रस्म-रिवाज़ो की 
बंदिशें,
ये जाति-धर्मों की 
रंजिशें,

इन बेमानी
साज़िशों से परे,

दूर कहीं
आंकी-बाकी गलियों में,
किसी मकां की 
खिड़की पर पनपता 
उतावला-सा 
इश्क़
इठला रहा होगा...

समाज की
बोझिल 
जंजीरें तोड़,
इशारों ही इशारों में
एक नया रिश्ता
सृजन 
पा रहा होगा…!!


- अंकिता चौहान