ये ज़िदंगी है !
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ये चाहतों के
फसाने,
पल दो पल के
दोस्ताने,
कहीं गिर पड़े शायद
या मैं ही
छूट गयी पीछे कहीं...
अश्कों को दे
तिलांजलि
निखार लिया
शब्दों का कुन्दन,
तितली से ले
पंख उधार
फिर रंग लिया
अपना
मधुबन,
वो नियति थी
ये ज़िदंगी है !!
- अंकिता चौहान