April 25, 2014

जीवन-नृत्य !

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तेरी चाहत के खनकते कंगन
डाल हाथों में...
अपनी आरज़ू की खनकती पायल
बिसार बैठी मैं...

सात फेरों के मध्य फिर
रचा गया मेरा कल,
तेरे निर्णय मेरे निर्णय,
तेरे रिश्ते ही मेरे रिश्ते...

इस पर पूछते हो तुम-
“ तुम क्यूं खुश नहीं रहती “

प्रिय,
तुम इतना समझ पाते
काश तुम ये बता पाते
बंदिशों में कसी धुन पर,
के बिन घूंघरू की थिरकन पर
“ जीवन-नृत्य कैसे हो
...जीवन-नृत्य कैसे हो !! “ 


- अंकिता चौहान