हथेलियाँ
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इन उलझनों की
बारिश में
नरम धूप सी
खिलती तेरी हथेलियाँ…
ना जाने
कहां गुम हो गयीं !
हथेलियाँ,
जो ज़िदंगी से
मेरी हर शिकायत को
धूमिल कर जाती थीं…
हथेलियाँ,
जो मेरी ख्वाहिशों
के
खडंहर पर,
सुकून भरे
लम्हें रख जाती थी !!
- अंकिता चौहान