April 02, 2014

Book Review: एक किरण उजाला - डॉ. सारिका मुकेश



कविताऐं अपना अलग ही संसार रचती हैं । जो उन्हे पढ़ते हैं उनके लिए चन्द लफ्ज़ों का ताना-बाना बन कर रह जाती हैं ये कविताऐं, लेकिन जो उनको महसूस करते हैं, उसका हर शब्द जीते हैं, वो कविता के हर लफ्ज़ से आलिंगन सा प्राप्त कर जाते हैं ... जैसे अंतर्मन में विचरण करती भावनाओं को कोई साथी मिल गया हो ।



हाल ही  में डॉ. सारिका मुकेश जी की एक किरण उजाला पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ । हालांकि इस से पहले मैंने इनका कविता संग्रह खिल उठे पलाश भी पढ़ा था, इस संग्रह का सबसे खूबसूरत पुष्प है  व्यक्तित्व की पहचान “  

किसी भी व्यक्ति को सम में नहीं , विषम परीस्थितियों में पहचाने !



इसके अतिरिक्त ..

कविता तो खुद बहती है,

बचपन कहां फिर लौटेगा,

आधुकनिकता का असर,

जगह से जुड़ जाती है स्मृति !



.... बहुत ही सुन्दर हैं ! अचरज़ तब होता है जबकि सारिका जी ने अपनी उच्च शिक्षा ( M.A.  , Ph.d. )  अंग्रेज़ी में ग्रहण की, फिर भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहीं, हिन्दी से  जुड़ी रहीं, साथ ही साथ हिन्दी को एक नया विस्तार भी दिया । इनके कविता-संग्रह एक किरण उजाला की एक कविता मेरे दिल के बहुत करीब रही,पलकें गीली कर गई ।



तेरी यादों की चटाई


तेरी यादों की चटाई

बिछाता हूँ

वक़्त की खुरदुरी जमीन पर

आराम कर, समेट कर,

खड़ी कर देता हूँ

उसी एक कोने में,

जहां तू कभी

रूठ कर खड़ी होती थी !



इसके अतिरिक्त ..

तुम्हारे बिना,

ऐसा भी होता है कभी कभी,

थी तुमसे ही मेरी पहचान,

पिता,

सर्दी की धूप

( मैं गर्भस्त शिशु सी, देखती हूँ चुपचाप सारी हलचल )

यही चाहते हो ना तुम.

बलात्कार,

स्मृतियों की दस्तक,

माँ ..!!



चन्द सरल शब्दों में अपनी बात कहने का गुण कहां होता है हर किसी में । इन दिनों जब अंग्रेजी साहित्य की लहर सी दौड़ रही है, ऐसे में सारिका जी की कवितायें सिखाती हैं कि हिन्दी में भी भावनायें सम्वेदनायें उतनी ही सुन्दरता से गढ़ी जा सकती हैं !



बाहरी आडम्बरों से भरी इस दुनिया में इनकी कविताऐं माँ की सुमधुर लोरी, माटी की सौंधी खुशबू का अहसास कराती हैं।

अगर आप हिन्दी साहित्य, कविताओं से लगाव रखते हैं तो यह कविता-संग्रह आपकी बुकशेल्फ को जीवंत कर देगा ।

डॉ.सारिका मुकेश जी को हार्दिक शुभकामनाऐं। 
यूँ ही लिखते रहिए, हिन्दी धड़कती रहेगी !!