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पहली बारिश में भीगी
मिट्टी से
उठती सौंधी खुशबू
...
तो कभी, हथेली पर
बेफिक्र महकती हिना मैं ॥
ख़ामोश तस्वीर के
बोलते रंग ...
तो कभी, नज़्म बन
कागज़ पर बहता एक लहज़ा मैं ॥
यादों का अब्र बन
सांसों में सिमटती इक साँझ ...
तो कभी, चाँद के नूर
को मुकम्मल करती इक शब मैं ॥
सब्र को उम्मीदों में
बदलता एक संवाद ...
तो कभी, झूठ को उम्र
भर जीता एक सत्य मैं ॥
एक मुस्कुराहट माँ
के होंठो की ...
तो कभी, बाबा के
माथे की सिलवटों में
छिपी एक फिक्र मैं ॥
वसंत में गूंजती
कान्हा की बंसी ...
तो कभी, पतझड़ में
राधा के नैनों से
बहता इंतज़ार मैं ॥
तेरे थिरकते लबों पर
अठखेलियाँ करती
एक मीठी सी चुप ...
तो कभी, तेरे
अंतर्मन के साथ आँख-मिचोली खेलती
निस्वार्थ प्रेम की
ज़ुबान मैं ॥