शिशिर के शामियाने पर
बेपरवाह ओस की बूंद जैसी
थोड़ा सा लड़कपन
नादान सा बचपन लिए
देखा था उसे ....
असमंजस में डाल दिया था उसने
अपने व्यक्तित्व से मुझे
कैसे हर किसी को बांध लेती थी
अपनी चंचलता से ,
फुदकती हुई,
अपनी बेहिसाब थिरकती हरकतों से
जीवन तराशती थी वो...
कागज़ पर बिखेर देती थी
कई रंग ज़िन्दगी के,
चहकते पंछियों से
होंसलों के पंख उधार लिए
छू आती थी . . नीले आसमां को
मीलों तक फैली मेरी खामोशी के पलों में
अपने ह्रदयस्पर्शी अलफाज़ों को
अटूट रिश्ते की चाशनी में लपेट
बना देती थी खास मुझे ...
आज अपनी भोली भाली शरारतों से
फासला कर ...
कुछ नये रिश्ते , कुछ नये सिलसिले
तलाशने निकल रही है ,
कुछ सकुचाई सी,
कुछ-कुछ शरमाई सी ...
लबों पर पंखुड़ियों सी मुस्कान,
और दिल में हज़ारों उमंगें लिए,
रख रही है कदम एक नये ज़हां में,
फिर किसी शक्स के
स्वप्निल मधुबन को संवारने ....!!
- अंकिता चौहान