किताब – कच्चे रंग
लेखक – मोहित कटारिया
प्रकाशक – वाणी प्रकाशन (2019)
विधा – कविता-संग्रह (नज़्में)
आईएसबीएन - 9789389012255
पृष्ठ - 140
मोहित कटारिया अपनी नज़्मों के पहले संग्रह ‘कच्चे रंग’ में मानवीय संवेदनाओं और प्रकृति के इर्द-गिर्द एक दुनिया बुनते हैं। वो खुद मानते हैं कि ‘कविता मुझे हर एहसास को ठहरकर महसूस करने के लिए प्रेरित करती है, कविता लिखना मेरे लिए बुनाई करने जैसा है,’ एकांत और जिजीविषा को गर एक भाषा मान लें तो ये नज़्में उसी भाषा के परिसर में टहलती नज़र आएंगी। उनके लफ्जों में छुपा मौन कभी सुकून पहुंचाता है तो कभी सोच पर हल्की दस्तक छोड़ जाता है।
मोहित कटारिया की नज़्मों को पढ़ना, अपने भीतर लौटने जैसा है, कुछ-कुछ सूफी रंग ओढ़े वो इन कच्चे रंगों से नए समय की कविताएं रचते हैं। पुरानी परंपरा को निभाए बिना कवि जैसे खुले आकाश में बिम्ब बुन रहा हो। उनका शिल्प कहीं-कहीं गुलज़ार साब से प्रेरित लगता है जैसे गुलज़ार के विस्तृत आँगन में एक कोंपल ने उगने की जिद में जगह तलाश ली हो।
मोहित कटारिया ने अपनी किताब को सात इंद्रधनुषी हिस्सों में बांटा है, मानवीय भावों से सींचे ये सात खंड उनके तजुर्बे और नजरिए का विस्तार हैं। वो लिखते हैं̶
‘और वक़्त की बेकरां रस्सी पे
एक नुक्ते-सा मैं,
बस उलझा हुआ हूँ,
अपने ही ज़रा से तजुर्बे
में’
मोहित अपनी एक नज़्म में लिखते हैं ‘दर्द की सोच हमेशा/ दर्द से बड़ी होती है’ वो मानते हैं कि ̶ दर्द को भी इतनी खूबसूरती से अभिव्यक्त किया जाता है कि वो कविताई हो जाता है। मुझे शायर की ये नज़्में लफ्जों में ज़्यादा उनकी सतहों में महसूस हुईं। ये नज़्म देखिए ̶
अब मैं सिर्फ
ख्वाबों में रोता हूँ
कुछ चेहरे
जो अब हक़ीक़त में दिख नहीं
सकते
उनके नक़्श उकेरता हूँ
अपनी नींदों में
और बतियाता हूँ रात भर
उनसे
अजीबो-गरीब सी भाषा में
कि जानता नहीं हूँ भाषा
उस जहान की मैं
और ये भी नहीं जानता
कि क्या याद होगी उन्हें
अब तक
भाषा इस जहान की?
इसी उधेड़बुन में
करवटें बदलते हुए नींद के
आगोश में
मैं हर रात उसी सूने
बिस्तर पर सोता हूँ
और हाँ,
अब मैं सिर्फ नींदों में
रोता हूँ।
मोहित कटारिया का लेखन, अनंत में छिपे मौन की तलाश हैं। उनके ख्यालों के बीच होड़ लगी है कलम से होकर कोरे कागज़ पर बिखरने की। कभी वो बारिश को रूपक की तरह रखकर ‘उन’ आँखों से कभी-कभार ही बरसने की प्रार्थना करते हैं, ‘उनकी’ आँखों के किनारे में अकारण अटके उस आँसू को कायनात का दर्ज़ा देते हैं, फिर उसी संवाद का दूसरा सिरा पकड़े जवाब भी खुद ही लिखते हैं कि ‘कुछ पौधे सिर्फ पानी में ही सांस लेते हैं’।
कवि कि हथेलियाँ कहीं सिक्कों
के भेष में रिश्तों की परख करती हैं कहीं उनका भोला मन, दोस्त की नाराज़गी
के इशारे पढ़ने की जद्दोजहद में लगा है।
मोहित की नज़्मों में इक मासूमियत झलकती हैं वो रिश्तों की नाज़ुक रगों को बखूबी समझते हैं, अपनी एक नज़्म ‘डर’ में वो लिखते हैं ̶
‘इसलिए डरता हूँ
बरसों से अनछुए,
कुछ रिश्तों को छेड़ने से
सोचता हूँ –
गुज़रे वक़्त के साथ हो ना
गएँ हों
वो भी सीले-सीले से...’
मोहित प्रकृति के प्रेम में हैं, ये उनकी नज़्मों में जाहिर हैं, वो रात के आसमां को काली चादर कहकर पुकारते हैं जिससे छन-छन कर रोशनी आती है, प्रकृति के अचंभे में डूबा उनका मन खुद से सवाल करता है ‘जाने कौन है दूजी ओर/ जो इतनी रोशनी रखता है’। कवि रात को एक बुढ़िया के समरूप देखते हैं जिसे ठहरने की इजाज़त नहीं है। गुलज़ार साब के निवास स्थान ‘बोस्कियाना’ में बिताई एक दोपहर को ध्यान में रखते हुए वो लिखते हैं ̶
‘बिछा के एक आसमान पूरा
खींच दी शाम की, धुंधली सी
चादर उस पे
फिर लिए मुट्ठी में चंद
तारे
और छिड़क दिए उस चादर पर...’
‘कच्चे रंग’ शीर्षक नज़्म में कवि तितलियों के पंखों से उँगलियों के पोरों पर रह गए रंग का मिलान, ज़ेहन पर छूटे रंगों से करते हैं। उनकी संवेदनशील आँखें एक साधारण से घोंसले के बनने में भी तिनकों से ज़्यादा उम्मीद और हौंसले को तज़रीह देती हैं।
‘लिखना चाहता हूँ मैं,
सिकुड़ते रिश्तों और फैलती
दूरियों के बारे में
जो एक बार घर कर लेती हैं
तो एक ही घर में कई घर बन
जाते हैं
इंसानी जंजीरों जैसे…’
यहाँ मैं एक छोटी सी कोशिश
कर रही हूँ इन नज़मों के सत्व को इस लेख में बांधने की, इस यकीन के
साथ कि मोहित कटारिया की ये नज़्में पाठक के दिल तक का रास्ता खुद तय करेंगी। अशेष शुभकामनाएँ।
‘कुछ सब्र हम में कम था कुछ खुद पर
था भरोसा
जहां नसीब बंट रहा था वो
कतार छोड़ आए’
लेखक के बारे में
राजस्थान में पले-बढ़े।
शिक्षा से कंप्यूटर इंजीनियर। पेशे से एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर।
जज़्बे से कवि और लेखक। पिछले चौबीस साल से कविता लेखन करते हुए पंद्रह सौ कवितायें
लिख चुके हैं। नवनीत, काव्या, चकमक जैसी राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित कवितायें। तीन
नाटकों का अनुवाद – दम-ए-तस्लीम, मिराज, अश्क नीले हैं मेरे। इनकी कवितायें कई लघु फिल्मों में इस्तेमाल की गई
हैं। कच्चे रंग, मोहित कटारिया का पहला कविता संग्रह
है।
P.S. Can’t thank you enough Pavan Jha (Da) for this gifted copy.